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23 Jun 2019 · 1 min read

मरीचिका

गरम लू की तपिश..
हवा की तरंगों में कुछ.
लिख जाती है..
ये लिखावट, कुछ
जानी पहचानी लगती है..
कुछ बताना चाहती है..
शायद ये तपिश..
खोल रही है,नये द्वार..
ये रास्ते शायद..
ले जाना चाहते हैं, मुझे..
शीतल पवन के झोंकों के बीच..
पर,
जीवन की इस तपिश की..
मुझे आदत सी हो गई है..
इसलिए सोचता हूं..
ये गरम तरंगों के बीच..
उभरती लिखावट..
रास्ता दिखलाती ये तस्वीरें..
एक भ्रम है..
और फिर भटकता हूं..
एक मृग सा..
इस मरीचिका में….

Language: Hindi
1 Like · 231 Views
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