आइन-ए-अल्फाज
आइन-ए-अल्फाज
यहाँ कत्ल नहीं देखते, देखे जाते इरादे,
आइन-ए-अल्फाज के ,हालात ही कुछ ऐसे हैं।
बेखौफ घूमती हैं कातिल,तो मैं भी क्या करुँ,
कोर्ट की जुबानी,बयानात ही कुछ ऐसे हैं।
तारीख दर तारीख फकत मिलती तारीख हीं,
अंधे हाकिम के, खैरात हीं कुछ ऐसे है।
फरियाद लेकर अपनी ,जाएँ भी तो जाएँ किधर,
अल्लाह भी बेजुबां है, सवालात ही कुछ ऐसे हैं।
अजय अमिताभ सुमन