जिसकी जुस्तजू थी,वो करीब आने लगे हैं।
प्रेम की डोर सदैव नैतिकता की डोर से बंधती है और नैतिकता सत्क
कितने छेड़े और कितने सताए गए है हम
*ओ मच्छर ओ मक्खी कब, छोड़ोगे जान हमारी【 हास्य गीत】*
"आकुलता"- गीत
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
किस किस से बचाऊं तुम्हें मैं,
The enchanting whistle of the train.
दानवीरता की मिशाल : नगरमाता बिन्नीबाई सोनकर
जो खत हीर को रांझा जैसे न होंगे।
निर्धन बिलखे भूख से, कौर न आए हाथ।
■ भगवान के लिए, ख़ुदा के वास्ते।।
दो शब्द ढूँढ रहा था शायरी के लिए,
जीवन के दिन चार थे, तीन हुआ बेकार।
सराब -ए -आप में खो गया हूं ,
सूखे पत्तों से भी प्यार लूंगा मैं
मिलते तो बहुत है हमे भी चाहने वाले
" वतन "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
रेत मुट्ठी से फिसलता क्यूं है