मन
बगीचे की ,
रौनक से ,
उकताई तितली का ,
मन कहता है कि,
यह आनंद,
निरर्थक है ।
फूलों से लकदक ,
यह उपवन छोड़कर,
भाग जाऊं ।
दूर कैक्टस की झाड़ी में ।
वहाँ ,
कीड़े मकोडों को ,
ताजा तरीन ,
रसीली कहानियाँ ,
सुनाऊं ।
और ,
अपने होने का ,
मतलब तलाश लूं ।
वहाँ कांटेदार कैक्टसों में ,
कितनी एकरसता होगी।
कोशिश करूं वहां सरस
बने आबो – हवा ,
अब पंख फड़फडा़ उड़ चलूं ।
मन से जी लूं , नये रंग में ,
नये ढंग से