मन का मीत
मन का मीत तोड़ प्रीत छोड़ अकेली चला गया,
प्यार में खोया मन रोया जीवन मेरा छला गया।
चिंता जगी आग लगी चिराग बुझा मोहब्बत का,
हुई ख़ता मिली सजा भूली जो वक़्त इबादत का।
दर्द मिला यही गिला कही हर बात उसे दिल की,
गम पीया सब्र किया खबर रही ना महफ़िल की।
दिल टुटा साजन रूठा सावन जैसे आँखे बरसी,
वो बिछड़ा संसार उजड़ा प्यार को उसके तरसी।
मिली बेवफ़ाई हुई जुदाई सुई सी चुभी मेरे तन में,
धोखा दिया छल किया पल रहा गुस्सा मेरे मन में।
गैर के वास्ते बदले रास्ते निकले झूठे उसके वादे,
तन्हा छोड़ा विश्वास तोड़ा काश समझ पाती इरादे।
कबूल सच गयी बच नयी जिंदगी की शुरुआत कर,
थी नादान सुलक्षणा मान अपना वो दौर ना याद कर।
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