भ्रम
कल रात अनोखा,
एक स्वप्न मुझे आया।
सोयी हुई थी मैं,
उसने मुझे जगाया।
जगाया कुछ इस तरह,
फिर नींद ही न आयी।।
नींद ही न आयी,
और सुबह जब हुई।
हड़बड़ा कर देखा मैंने,
स्वप्न नहीं था कोई,
भ्रम ही था यह मेरा,
मैं तो पड़ी थी सोयी।।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार) ।
दिनांक :- २३/०७/२०२२.