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17 May 2023 · 1 min read

भ्रम

कल रात अनोखा,
एक स्वप्न मुझे आया।
सोयी हुई थी मैं,
उसने मुझे जगाया।
जगाया कुछ इस तरह,
फिर नींद ही न आयी।।

नींद ही न आयी,
और सुबह जब हुई।
हड़बड़ा कर देखा मैंने,
स्वप्न नहीं था कोई,
भ्रम ही था यह मेरा,
मैं तो पड़ी थी सोयी।।

रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार) ।
दिनांक :- २३/०७/२०२२.

Language: Hindi
323 Views
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