*** भूख इक टूकड़े की ,कुत्ते की इच्छा***
एक रोटी के टूकड़े को देखकर
आँख लालाइत हो गयी उसकी
वो दौड़ा उठाने को अपनी भूख की खातिर
तब तक वो कुत्ता ले गया उठा उसको
अपने पेट की आग को बुझाने के लिए
वो देखता रहा शायद कोई डाल दे
टूकड़ा इक रोटी का मेरे भी लिए
तब तक फटकार लगा दी पहरेदार ने
तू भाग यहाँ खड़ा किस लिए
वो तरसती अखिआन ढूंढ रही थी
उस की पेट की आग बुझाने के लिए
घूम रहा था डगर डगर
पग थक गए थे मगर
पर जीना था बस खाने के लिए
अपना नन्हा सा घर चलाने के लिए
कहीं से एक फ़रिश्ता चला आया
शायद भेजा था खुदा ने उसी के लिए
ले चला साथ उसको उसकी इच्छा के लिए
उस रोटी के चन्द टूकड़ों के लिए
उसने देखा वो देखता ही रह गया
इक टूकड़े की खातिर वो इतना खो गया
पल भर के लिए वो कहीं खो गया
उस फ़रिश्ते की गोद में सर रख कर वो
सदा के लिए “”बस”” सो ही गया !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ