भीतर तू निहारा कर
अपनी अपनी जिद से पल भर को किनारा कर
मुमकिन है कि बन जाये फिर से बात दोबारा कर।
मुझको कोई चीज़ समझ न तेरा हूँ तो तेरा ही हूँ
तुझसे दूर नही जाऊंगा कितना भी इशारा कर।
एक समंदर गहरा दिल है सारे गम पी जायेगा
गम की सारी नदियों को मेरी और पुकारा कर।
धूप नही जो आंगन में तो सूरज को मत कोसा कर
जुगनू को मनमीत बना दिल में कुछ उजियारा कर।
सारी फसलें काट चुका जो मिट्टी से मिल आया है
वो जो घर का बूढा है मत उस पर ज्ञान बघारा कर।
माँ जो कहती है “तू” बेटा, सूरज चंदा तारा है
बातें उसकी झूठी न हो खुद को एक सितारा कर।
कुछ न हासिल हो,’विनीत’ तू खुद को पा जायेगा
बाहर से पहले, ग़र अपने भीतर तू निहारा कर।
– देवेंद्र प्रताप वर्मा”विनीत”