भाग्य से अपने तू भी तो लड़।
भाग्य तुम्हारा कर्मो का फल,
लकीरें हाथों की मेहनत की रगड़,
धैर्य पकड़ कर बढ़ते चल,
भाग्य से अपने तू भी तो लड़ ।
अडिग मनोबल पर्वत-सा तुझमें,
सहनशक्ति धरा में होती प्रबल,
सूर्य किरण आशा की डगर,
भाग्य से अपने तू भी तो लड़ ।
उमंग तुझमें ज्ञान ना कम,
लाल रुधिर जीवन का कण,
दृढ़ संकल्प विकल्प है जड़,
भाग्य से अपने तू भी तो लड़ ।
टूटता तारा गुजरेगा उस पल,
होगा खड़ा तू मार्ग में जिधर,
छोड़ना ना एक क्षण प्रयास कर,
भाग्य से अपने तू भी तो लड़।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उoप्रo) ।