भयावह होता है अकेला होना
भयावह होता है अकेला होना
और उससे भी अधिक भयावह
भीड़ में रहकर अकेला होना ।
शुरुआत में
दम घोंटू सा लगता है ये अकेलापन
और कई बार
जिंदगी को लील जाता है
उसका ये विरानापन।
पर कुछ होते हैं,
जो झेल जाते हैं,
जान के इस जंजाल को,
निकल आते हैं बाहर
तोड़कर सारे मायाजाल को ।
हो जाते हैं आदी
वो इस अकेलेपन के
और यहीं आदत बन जाती है
उनकी जरूरत ।
जरूरत ,
जिसके बिना जीना
उतना ही मुश्किल लगता है
जितना प्रेमी के रहते हुए
प्रेम के बिना जीना ।।