बड़ी तकलीफ़ पाया हूं यह पर मुस्कुराने मे ।
ग़ज़ल -यहाँ पर मुस्कुराने मे
तलाशे इश्क़ मे निकला जफ़ा के आशियाने मे ।
बड़ी तकलीफ़ पाया हूं यहाँ पर मुस्कुराने मे ।
मिली जो मतलबी दुनियां तराशेगी मुहब्बत को ।
मुझे मालूम है लेकिन मज़ा है आजमाने मे ।
वफ़ा के नाम पर उनको खुदा ही मान बैठा हूं ।
मुझे दिलचस्पी है उनमे उन्हें किस्सा सुनाने मे ।
हँसेगी देखकर दुनियां जलता घर ग़रीबों का ।
मदद करता नही कोई जरा कर्जा चुकाने मे ।।
न रिस्ते है न रिस्तों की कोई परवाह करता है ।
नही जज़्बात है क़ायम बेक़ाबू इस जमाने मे ।
हक़ीक़त मे कहर बरपा जवां है गमसुदा आलम ।
कहाँ तकलीफ़ होती है किसी का दिल दुखाने मे ।
मुहब्बत मे वकीली का मुझे एतराज है रकमिश ।
बहें है आँख से आंसू जरा सा गुनगुनाने में ।
राम केश मिश्र