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2 May 2024 · 1 min read

बे-फ़िक्र ज़िंदगानी

किसी को हमारी फ़िक्र नहीं ,
हम सबकी फ़िक्र क्यों करें ?

सब अपने में ही मस्त हैं हम भी ,
अपने में ही क्यों ना मस्त रहें ?

हर शख़्स की अपनी-अपनी अलग दुनिया है ,
दर्द -मंद रिश्तो के निबाह की अब सिर्फ कहानियाँ है,

इस जमाने में हमदर्द ढूंढे नहीं मिलते ,
दूसरों के हाल पर लोग तमाशा हैं देखते ,

दौलत-ओ – शोहरत की अना में डूबा ,
मौक़ा’- परस्त ये ज़माना है ,

फ़रेब- दहिंदा अपनी ख़ुदी से
हारा ये ज़माना है ।

Language: Hindi
20 Views
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