*बूढ़ा दरख्त गाँव का *
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
*बूढ़ा दरख्त गाँव का *
सागर में जा कर
नदी का विलय होना
नदी की परिणीति है
अन्य जो कुछ है इससे विलग
सखी वो सब महज़
मानवीय सिर्फ़ सहानुभूति
ये शब्द सृजन तो माया है
पंचतत्व है यही अंततोगत्वा
भीषण सत्य है
सार्थक प्रतीति है
माटी में माटी से
मिलने की एक अजब
अनुभूति है या होती है
उम्र भर सब देखा हमने
निकटतम व्यवहार विकट
सहा प्रतिकार तूने भी और मैने भी
उम्रदराज दरख़्त मेरे गांव का
मुझको बुला रहा बौर आया था
भर भर के था मुस्कुरा रहा
लौंडे गांव के उसपे शौकिया
कुछ लिख गए थे खुरच खुरच
नाम अपनी अपनी प्रिया
के संग अमरत्व पाने को
खजुराहो सा बना
वो अब खिसिया रहा
सागर में जा कर
नदी का विलय होना
नदी की परिणीति होती है
अन्य जो कुछ है
सखी वो सब महज़
मानवीय सिर्फ़ सहानुभूति
😁😁😁👆