बिन फले तो
* गीतिका *
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बिन फले तो पेड़ कोई व्यर्थ झुक जाता नहीं।
बिन अमित गहराइयों के सिंधु लहराता नहीं।
सांझ ढलने पर पथिक विश्राम करता है मगर।
भोर होते चल पड़ा फिर व्यर्थ रुक पाता नहीं।
कौन हैं साथी हमारे ग़म नहीं इस बात का।
हर सरल हालात से अपना यहां नाता नहीं।
सत्य आधारित सफल होता यहां हर व्यक्ति है।
जो हवा में स्वप्न सबको व्यर्थ दिखलाता नहीं।
साधना रत हर तपस्वी है सफल होता यहां।
जो जगत की मोहमाया देख भरमाता नहीं।
खूबसूरत रंग लेकर मोह लेता मन सभी।
व्यर्थ क्यों वह पुष्प जो माहौल महकाता नहीं।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)