बिटिया
बन के परी नन्ही सी बिटिया,जब आँगन में आती है।
मंद-मंद मुस्कान देखकर,मइया खुश हो जाती है।।
पर पापा के माथे पर ,चिंता की लकीरें दीखती हैं।
दादी की बातें भी थोड़ी ,सहमी-सहमी लगती हैं।।
क्यो होता है ऐसा, क्या बिटिया होना पाप है।
क्या दहेज के कारण ही, सबसे बड़ा अभिशाप है।।
क्यों बिडम्बना ऐसी है,क्यों तिरस्कार ही मिलते हैं।
जबकि बिटिया के कारण ही, फूल वंश के खिलते हैं।।
कब समझेगा यह समाज,इस नारी की गरिमा को।
सृष्टि का संचार करने वाली,शक्ति की महिमा को।।
नही रहेंगी अगर नारियां ,क्या जहान रह पाएगा।
बागवान की बगिया में,क्या फूल कोई खिल पायेगा।।
करबद्ध निवेदन है मेरा,जन- जन से बस यह कहना है।
नारी का सम्मान करो,ये प्रकृति का अद्भुत गहना है।।
जीने का अधिकार इन्हें दो,जीने दो सम्मान से।
एक दिन मिल जाएंगी खुशियां, इनकी नयी पहचान से।।