बाल विवाह समस्या
हमारे भारतीय समाज में नारियों का यह दुर्भाग्य रहा है कि इस देश में नारी को देवी बना कर पूजने की प्रथा तो रही है लेकिन इसके साथ ही उसके शोषण के लिए असंख्य ऐसी धार्मिक प्रथाएं भी बना दी गई हैं जो नारी के मानसिक और शारीरिक शोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उन्हीं प्रथाओं में से एक हैं बाल विवाह, एक ऐसी सामाजिक बुराई जो केवल हिंदू धर्म में ही नहीं बल्कि मुस्लिम धर्म में भी बहुलता से पाई जाती है, और इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि यह सामाजिक बुराई आगे चल कर अनेक सामाजिक समस्याओं को उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्राचीन काल से चली आ रही नारी के उत्पीड़न में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती बाल विवाह की प्रथा एक सामाजिक समस्या और कानूनन अपराध होने के उपरांत भी हमारे स्वतंत्र, सभ्य, शिक्षित, आर्थिक रूप से सबल आधुनिक भारत में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं तो यह वास्तविकता बहुत शर्मसार करने वाली हैं वहीं गंभीर चिंता का विषय भी है।
बहरहाल इसमे भी कोई दो राय नहीं है कि यह प्रथा शोषण का दूसरा रूप है, ज़ाहिर सी बात है कम उम्र में परिपक्वता का पूर्णता आभाव रहता है घरेलू, मातृत्व संबंधी एवं शिशु मृत्यु जैसी असंख्य समस्याओं को उत्पन्न करने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। या ऐसे भी कह सकते हैं कि यह प्रथा भी हमारे समाज की संकुचित मानसिकता का प्रतीक है जिसके अंतर्गत नारी एक समस्या के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं,निम्न व निर्धन वर्ग से संबंधित अशिक्षित लोग कभी यौन अपराधों की बढ़ती घटनाओं के भय से तो कहीं दबंगों की कुदृष्टि से बचाने के लिए भी बाल विवाह को एक मात्र विकल्प मानते हैं, उनका यह भय असंख्य मासूम बच्चियों और बच्चों से उनके जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है, जो एक समृद्ध राष्ट्र के लिए किसी भी रूप में उचित नहीं, लोगों में शिक्षा का आभाव, जागरूकता की कमी, गरीबी, बेरोज़गारी, लिंगभेद, रूढ़िवादी मानसिकता आदि जैसे असंख्य कारण भी है जो इस समस्या को हमारे समाज में गंभीर बनायें हुए हैं जब तक यह समस्याएं समाप्त नहीं होंगी तब तक यह समस्या भी खत्म नहीं होने वाली ।
यह प्रथा जहां बाल अधिकारों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन है वही बच्चों के लिए एक अभिशाप भी है, कम उम्र में हुई शादी बच्चों के जीवन को, उनकी आशाओं और उमंगों को झुलसा के रख देती है ऐसी दुखद समस्या का अंत किया जाना बहुत आवश्यक है।
ऐसा नहीं है कि इस समस्या के उन्मूलन के लिए सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए हैं, किये हैं, सरकार ही नहीं बल्कि गैर सरकारी संस्थाएं इस समस्या के उन्मूलन के लिए प्रयासरत भी है, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक एंव हिमाचल प्रदेश ने तो इस प्रथा को समाप्त करने के लिए कानून भी पारित कर दिए हैं जो कि एक सराहनीय कदम है, लेकिन प्रशन यह उठता है कि कानून बना देने से समस्या का समाधान होता है.? नहीं कदापि नहीं, जब तक कि समस्या के मूल कारणों का निवारण नहीं किया जायेगा तब तक यह समस्या समाप्त होने वाली नहीं, कानून का भय दिखाकर प्रथाओं का अंत नहीं किया जा सकता, इसके लिए सभी को सामूहिक रूप से प्रयास करने होंगे।साथ ही सरकार को भी चाहिए कि इसके समाधान के लिए सार्थक कदम उठाए, जिन प्रदेशों के गांव, देहातों में इस प्रकार की घटनाएं घटती हैं वहां पर रोज़गार और शिक्षा की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर जागरूकता अभियान से भी लोगों को इस समस्या के दुष्परिणामों से अवगत कराया जाये तो निश्चित ही इन प्रयासों के सार्थक परिणाम देखने को मिलेंगे और फिर मुझे नहीं लगता कि कोई शिक्षित और आत्मनिर्भर व्यक्ति बाल विवाह जैसी कुरीति को बढ़ावा प्रदान करेगा ।
…………………डॉ फौज़िया नसीम शाद………