बरसात
कहाँ से होगी अब पहले जैसी घनघोर बरसात ।
शहरों में तो हमने सीमेंट के जंगल बसा लिए ।
कहाँ से पूर्ति होगी हमारे शहरों में शुद्ध पानी की ।
बहती नदियों में तो हमने अपशिष्ट बहा दिए ।
अब बरसात में कहां से लाओगे पहले जैसे
वो कागज की कश्ती का खेल, दोस्तो संग कीचड़ में रेलम – रेल, ।
क्योंकि हमे अब बरसाती पानी में कीटाणु दिखने लगे ।
बहुत कुछ खो दिया है हमने, कुछ पाने की होड़ में ।
वो बाहर पानी मे अलमस्त नहाना और यारो संग छिया छतोड़ी का खेल ।।
पहले की बरसात और अब की बरसात में कुछ तो बात है ।
वक्त वक्त की बात है तब कैसी और अब कैसी बरसात है ।।