“बन्दगी” हिंदी ग़ज़ल
सभी मित्रों के दम से ही, है बेशक ताज़गी मेरी,
गरज़ ये, साथ बस गुज़रे, ये बाक़ी ज़िन्दगी मेरी।
भले ही हार जाऊँ मैं, ज़माने भर के खेलों मेँ,
वही गिल्ली, उसी डँडे मेँ, बसती जीत भी मेरी।
जहाँ खेले, बढ़े, कूदे, नमन माटी को है उर से,
उन्हीं सरसों के पुष्पों मेँ है, अधरों की हँसी मेरी।
दुआ माँ-बाप की, बस साथ में, मेरे रहे ईश्वर,
रहे क़ायम वो बचपन, और आँखों की नमी मेरी।
शग़ल लिखने का यूँ, स्वीकार है मुझको भले “आशा”,
ग़ज़ल हरगिज़ नहीं है ये, है ये तो बन्दगी मेरी..!