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13 Jun 2020 · 1 min read

बचपन का अनकहा प्यार

सताती है याद मुझे उसकी रात दिन
करता हूँ जब भी मैं उसका ख्याल
सूरत बसी है उसकी यारों मेरे दिल में
नहीं कर पाया हूँ पर कभी इजहार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार

आकर ख्वाबों मुझको रुला जाती है
फिर थपकियाँ देकर मुझको सुला जाती है
आँख खुल जाती है तब मेरी हर बार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार

बात तब कि है ए जब जाता था स्कूल मैं
रहता था खोया हरदम उसमें ही फिजूल मैं
शायद इसीलिए कहने से मैं डरा हर बार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार

आज भी जब कहीं मुझसे मिल जाती है
दिल की कलियाँ मिलन से ही खिल जाती हैं
दिल सुबक उठता है पर मेरा हर बार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार

चाहता था उसको मैं खुद से भी ज्यादा
कहने का उससे भी था करता इरादा
जब भी जाता था कहने को मैं उसके पास
दिल करता था धक-धक बड़ा जोरदार
वो बचपन की है मेरे अनकहा प्यार -2

✍?पंडित शैलेन्द्र शुक्ला
?writer_shukla

Language: Hindi
2 Likes · 343 Views
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