” बऊआ आब आहां भसिया गेलहुं “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
————————————–
बऊआ आब आहां भसिया गेलहुं
पता नहिं
कोन दुनियाँ
मे उझरा गेलहुं !
घुरि कें
नहिं देखैत छी
समयक आभाव अछि !
सासुर मे
लिप्त
रहबाक चाहि ,
कर्तव्यक
निर्वाह मे पाछु
नहिं
रहक चाहि !
जननी
जे जन्म देलनि
स्नेह ,दुलार
सं
पूर्ण केलनि
तकरा बिसरि आहां
दूर देश
बैसल छी -घूरियो नहिं देखैत छी !
समाजक भार
किछु
कनि -कनि याद राखि
कतबो
हम दूर रहि
आत्मीयता
बनल राखि !
———————————-
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका