फिर आई स्कूल की यादें
फिर आई स्कूल की यादें
वह छोटी-छोटी शरारत के इरादे
काश मैं फिर से जा पाता स्कूल
करता बहाना
अब याद आता है वह पुराना जमाना
शरारत भरी मस्ती दिलों में उमंग थी
हमारी ग्रुप देखकर मैडम भी जंग थी
हमारा स्कूल हमारा ग्रुप हमारा बस्ती
हमको जो छू लेते थे
उनकी बिगाड़ देते थे हंसती
जब यारों के यार मिला करते थे स्कूल के बहाने अब याद आते हैं सभी यार ,वह प्यार भरे सहारे
स्कूल के बच्चों को देखकर लगता है
फिर से बच्चा बन जाऊं
और फिर से स्कूल जाऊं
और यही रीत दोहराव
यही रीत दोहराव
काश मैं फिर से स्कूल जा पाऊं
हँसते खेलते गुजर जाये
वैसी शाम नहीं आती…
होंठों पर अब बचपन वाली
मुस्कान नहीं आती!!
लेखक – अर्जुन भास्कर
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