“प्रेम-परीक्षा”
आज पूनम का चाँद अपने शबाब पर था। समन्दर का शोर लगातार बढ़ता जा रहा था। मटमैला पानी लहरों की शक्ल में बार-बार अपनी सीमाएँ तोड़ रहा था। मन यूँ ही डूब-उतर रहा था। किसी ने मेरे कन्धे पर हाथ रखा तो मेरा सोचने का क्रम टूटा। वो और कोई नहीं सुनैना ही थी। वह बड़े प्रेम से बोली- “नीरज, तुम यहाँ कैसे?”
सुनैना को देखकर सहसा मुझे अपनी आँखों पर यकीन न हो रहा था। तभी मेरा मनोभाव भाँपते हुए उसने कहा- “मैं किसी केस की तफ्तीश में यहाँ आई हूँ…और अचानक तुम पर मेरी नजर पड़ गई।”
“क्या मतलब?” मैंने चौंककर उनसे पूछा।
मैंने पुलिस की नौकरी जॉइन कर ली है। मैं क्राइम ब्रांच में डी.एस.पी. हूँ।
ओह ! तो ये बात है…? अचरज से मेरे मुँह खुले रह गए।
“ये बात है नहीं, तुम भी अपराधी हो। तेरी ही तलाश थी मुझे।”
एक डॉक्टर क्या अपराध कर सकता है भला? मैंने हँसते हुए कहा।
एक गम्भीर अपराध किया है तुमने, जो गैर जमानती है। कुछ देर रुक कर बोली- “बताओ जो तुमने किया वो प्यार था या मैंने किया वो…?” यह कहते हुए दर्द की एक लहर सुनैना के स्वर में उभर आई।
हॉं, मैं तुम्हारा अपराधी हूँ, गुनाहगार हूँ, जो सजा चाहो मुझे दे लो… सब कुछ मंजूर है मुझे।
पता है पूरे दस साल बाद हमारी मुलाकात हो रही है। इस दस साल में बुनियादी तौर पर हम ज्यादा परिपक्व हुए हैं, दुनिया को देखने का नजरिया बदला है। आदर्शों और मूल्यों के जाल से बाहर निकल आए हैं हम। प्रेम और आकर्षण के फर्क को समझने के लिए यह प्रोबेशन पीरियड आवश्यक था।
“तो क्या तुम अब भी…?” मैं आश्चर्य से भरकर बोला।
‘मैं जीवन भर तुम्हारा इन्तजार करने का व्रत ले रखी हूँ।’ यह कहते हुए सुनैना की आँखें नम हो गईं।
सुनैना, कोई भी दिन न गुजरे होंगे, जब तुम्हारी याद न आई हो। जानती हो, इन यादों में दूरियाँ नहीं होती… और न ही कोई बन्धन… वो कभी भी, कहीं भी चली आती है।
सुनैना ने बड़े प्यार से एक हल्का सा धक्का दिया, फिर जोर से खिलखिला पड़ी। उसके सामने खड़ा हुआ मैं यह सोचने लगा कि पुलिस और कम्युनिज्म? तभी वह बोल पड़ी- इस वर्दी का मतलब… और कुछ नहीं…हर तरह के शोषण का अन्त करना है।
तभी आसमान में बादल गड़गड़ाने लगे, बिजलियाँ चमकने लगी और बारिश शुरू हो गई। बारिश की बूंदों से बचाने के लिए मैंने सुनैना को अपनी तरफ खींच लिया, लेकिन कुछ ही पल में वह भागने लगी। मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ने लगा। जूतों में रेत भर जाने से मेरे पैर भारी होने लगे।
आसमान में बादलों की लगातार उपस्थिति से अन्धेरा गहराने लगा था। मैं पूरी ताकत से दौड़कर भी उस तक नहीं पहुँच पा रहा था। सुनैना बोल रही थी- “यही प्रेम की परीक्षा है।”
मैं रुक गया… और… वो गुम हो गई।
( “पूनम का चाँद” कहानी-संग्रह में संकलित ‘प्रेम-परीक्षा’ कहानी के कुछ अंश )
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति