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18 May 2024 · 1 min read

लगते नये हो

भूले बिसरे गीतों की तरह
मधुरिम हो गए हो
याद करता हूँ जब जब
लगते नए हो ।

वही मोहल्ला
मोहल्ले की गलियाँ
मंदिर की देहरी पर
फूल और फुलझरियाँ
लगता है आज भी
कहीं नहीं गए हो ।

सोम की तरह
माथे पर सवार हो
चलते हो संग संग
कूल या कछार हो
मेरे लिए अप्रतिम
उपहार हो गए हो ।

स्वप्न का भी सपना
आज साथ मेरे
जीवन के सुख दुख
निवारे सँवारे
उदय अस्त सूर्य से
निलय हो गए हो ।

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