प्रेम तुझे जा मुक्त किया
“प्रेम तुझे अब मुक्त किया!”
अपनी श्वासों को प्राण वायु से क्यों कान्हा तुमने रिक्त किया।
अव्यक्त रही उर अभिव्यंजनाओं पर पहरेदार नियुक्त किया।।
जन्म जन्म की प्रीत नहीं है ये भाव हृदय निरुक्त किया।
हाथ छुड़ा राधिका से बोले- “जा प्रेम तुझे अब मुक्त किया।”
नेह- स्नेह के धागों को था मैंने उरतल से संयुक्त किया।
बीच राह में छोड़ अकेला क्यों प्रीत का पलड़ा अयुक्त किया।।
नीलम शर्मा ✍️
अयुक्त-युक्ति का अभाव; कुतर्क
निरुक्त-निःसंदेह एवं स्पष्ट।