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30 Jul 2022 · 4 min read

*कविवर रमेश कुमार जैन की ताजा कविता को सुनने का सुख*

कविवर रमेश कुमार जैन की ताजा कविता को सुनने का सुख
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यह मेरा सौभाग्य रहा कि रामपुर के अग्रणी सामाजिक कार्यकर्ता श्री रमेश कुमार जैन कृपा करके मुझसे मिलने के लिए समय-समय पर मेरी दुकान पर आ जाते हैं । आपके आगमन से सात्विक वातावरण की अभिवृद्धि होती है । जो वार्तालाप होता है, उससे वैचारिक समृद्धि तो होती ही है ,साथ ही साथ कुछ अनुसंधान के नए क्षेत्र भी खुलने लगते हैं । रमेश कुमार जैन साहब मूल रूप से एक शोधकर्ता हैं । शोधकर्ता भी ऐसे कि जिस विषय पर अथवा जिस क्षेत्र में खोज करनी है ,जब तक उसकी गहराई में जाकर एक – एक चीज का प्रामाणिक रूप से परिचय प्राप्त नहीं कर लेंगे , तब तक वह संतुष्ट नहीं होते । उनके अनेक शोध कार्य इसीलिए अधूरे पड़े हैं क्योंकि अभी तक वह पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। मैंने कई बार उनसे आग्रह किया कि आप जितना कार्य कर चुके हैं ,उन्हीं को प्रकाशित कर दें । लेकिन वह तैयार नहीं हैं। इसी श्रंखला में बाबा लक्ष्मण दास समाधि तथा कुछ अन्य कार्य भी रुके पड़े हैं।
एक कवि के रूप में रमेश कुमार जैन बहुत अधिक विख्यात तो नहीं हैं बल्कि कहना चाहिए कि एक कवि के रूप में उनका परिचय लगभग नहीं है। लेकिन पिछले दिनों आपने जो कविताएँ लिखीं और मुझे सुनाईं, उनसे अतुकांत कविता के क्षेत्र में आपकी गहरी पैठ सामने आई। आज दिनाँक 30 जुलाई 2020 बृहस्पतिवार को जब दोपहर आपका आगमन मेरी दुकान पर हुआ ,तब आपने पहला प्रश्न यही किया कि “कुछ समय हो तो मैं कविता सुना दूँ ?” ” इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती है”- मैंने कहा और एक सुंदर कविता टाइप की हुई रमेश कुमार जैन जी के झोले में रखी हुई थी , वह उन्होंने निकाली और पढ़ना शुरू किया । कविता में भारत का अतीत और सच कहूँ तो रमेश कुमार जैन जी का अपना बचपन , उसकी यादें और ढेरों नसीहतें जिन पर चलते हुए हम एक समृद्ध और आदर्श राष्ट्र और समाज का निर्माण कर सकते हैं, वह सब इस कविता में था । शब्द क्योंकि आस्था के अमृत से सींचे गए थे , इसलिए उनमें बल था ।
दशहरे के उत्सव पर आश्विन शुक्ल दशमी पर व्यापारिक घरों में जिस प्रकार से नए बहीखातों का पूजन किया जाता रहा है, उसका बड़ा सुंदर वर्णन इस कविता के एक अंश के रूप में मिलता है । नए बहीखातों का आरंभ दशहरे पर किए जाने की सैकड़ों वर्ष पुरानी परंपरा रही है। मैंने रमेश कुमार जी से पूछा “यह जो इतना जीवंत वर्णन आपने दशहरे के अवसर पर बहीखातों के पूजन का किया है तो क्या वास्तव में बहीखाते होते थे ?” वह बोले “बही खाते तो नहीं होते थे लेकिन पूजन अवश्य पुरानी विधि से ही होते रहे और जो कुछ मैंने देखा वही लिखा है ।” सचमुच ऐसा जीता जागता चित्र खींच देना कमाल की ही बात कही जा सकती है । जब से 31 मार्च के उपरांत नया वित्त वर्ष आरंभ होना शुरू हुआ है ,दशहरे पर व्यापारिक नव वर्ष की परंपरा अनेक दशक पूर्व ही समाप्त हो चुकी है ।
अपने देश की माटी की सुगंध ,अपने देश की भूमि की औषधियों के गुणों से भरपूर होने की सौभाग्य वाली स्थिति प्रामाणिकता के साथ कविता में दर्शाई गई है । इसके पीछे रमेश कुमार जैन का शोधकर्ता वाला मस्तिष्क काम कर रहा है ।
कोरोना संकट में आपस में थोड़ा दूरी बना कर रहने की सीख भी कविता में दी गई है । कुल मिलाकर रमेश कुमार जैन जी का यह काव्य पाठ एक वरदान ही कहा जा सकता है ।
बातों – बातों में रमेश कुमार जैन जी ने रामपुर के प्रसिद्ध आशु कवि स्वर्गीय श्री कल्याण कुमार जैन “शशि” जी का स्मरण किया । आपने बताया कि आपके बाग आनंद वाटिका में शशि जी की काव्य- – पुस्तक कलम का विमोचन श्री महावीर सिंह जी जज साहब के कर कमलों से आप ने कराया था । उसके उपरांत खराद काव्य पुस्तक का विमोचन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्री चेन्नारेड्डी के कर – कमलों से आनंद वाटिका में संपन्न हुआ था । यह दोनों ही कार्यक्रम बहुत प्रभावशाली रहे थे ।
चेन्ना रेड्डी के साथ अपने संपर्कों का एक स्मरण करते हुए आपने कहा कि एक बार चेन्नारेड्डी साहब को रामपुर से गुजरना था और रुकना नहीं था । लेकिन जब मैं फूलों की माला लेकर गेस्ट हाउस, चर्च के सामने, सिविल लाइंस पर खड़ा हो गया और जब चेन्ना रेड्डी साहब की कार सामने से गुजरी, तब मैंने हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया और मुझे देखते ही चेन्ना रेड्डी साहब ने कार को रुकवाया ,पीछे किया और फिर उसके बाद कहने लगे “पीने का पानी क्या मिलेगा ?” बस फिर क्या था ,गेस्ट हाउस में जलपान का तो पूरा प्रबंध पहले से ही था । चेन्नारेड्डी साहब रमेश कुमार जैन के साथ करीब आधा घंटा रुके रहे । लखनऊ स्थित श्री चेन्ना रेड्डी के निवास पर भी आपका उन दिनों जब वह गवर्नर थे अनेक बार जाना होता था ।
रमेश कुमार जैन वास्तव में एक मस्त फकीर हैं। दुनिया से लगभग बेखबर लेकिन इतिहास में और इतिहास की बारीकियों में डूबने वाली व्यक्ति हैं। वह कल्पनाओं में विचरण करते हैं और मूलतः मैं उन्हें एक कवि ही मानता हूँ। उनकी कविता की शैली अतुकांत है । सच पूछिए तो वह खुद में एक अतुकांत व्यक्ति हैं। अपने में खोए रहने वाले हैं । लेकिन अपनी हर गतिविधि से वह हमें उच्च मूल्यों से जोड़ते हैं।
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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