#कविता//प्रेम
#प्रेम-उल्लाला छंद
रहना सीखो प्रेम से , मज़ा नहीं तकरार में।
ज़न्नत जैसा सुख मिले , प्रेम भरे व्यवहार में।।
हृदय जीत ले प्रेम जो , शक्ति नहीं तलवार में।
दीवाना हर दिल बने , दम हो जब इक़रार में।।
आँखें तो कहती रहें , बातें-दिल दीदार में।
पढ़ पाता है पर वही , जीता हो जो प्यार में।।
भूल शिकायत और से , सजा हृदय इतबार में।
सत्य मधुरता जोड़िए , कशिश तभी इसरार में।
पल में जीना सीखिए , ख़ुशियाँ पल स्वीकार में।
पल में खींचे ध्यान तो , प्रभा छिपी मिक़दार में।।
‘प्रीतम’ कश्ती प्रेम की , डूबी कब मझधार में।
लहरों से वो जूझ के , पार लगी हर बार में।
#सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
कवि-आर.एस.’प्रीतम’