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2 May 2024 · 1 min read

विकृतियों की गंध

जबसे बिके बजार में,

आपस के संबंध।

व्यर्थ नजर आने लगे

सारे अर्थ प्रबंध।।

सारे अर्थ प्रबंध

निरर्थक नए दौर में।

विकृतियों की गंध

भरी है खिली बौर में।।

अपनेपन की खुशबू

खोई सी है तब से।

रिश्तो का आधार

बना है पैसा जब से।।

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