पितृ स्तुति
जो देकर अपनी ऊर्जा, करे नवग्रह का संचार।
उसी सूर्य सम तात है सन्तान के सकल संसार।।
पिता सूर्य हैं, पिता है बरगद
गम में दुखी हैं खुशी में गदगद
बच्चों में मिल बच्चे बन जाएं
हर दुख को खुद ही सह जाएं
उन्हीं पिता के हम गुण गाएं
उनको हम सब शीश झुकाएं
पिता हैं पोषक, पिता सहारा
ये संतति के हैं सृजन हारा
पूरे कुल का जो भार उठाएं
कभी न इनके दिल को दुखाएं
उन्हीं पिता के हम गुण गाएं
उनको हम सब शीश झुकाएं
पिता हैं मेला, पिता है ठेला
पिता बिना लगे संसार अकेला
अपना दुःख न कभी जताएं
जो बिना आंसुओं के रो पाएं
उन्हीं पिता के हम गुण गाएं
उनको हम सब शीश झुकाएं
पिता क्रोध, पिता पालनहारा
इनके क्रोध में छिपा सहारा
दुःख में भी तो ये हंसते जाएं
हम रहस्य को समझ न पाएं
उन्हीं पिता के हम गुण गाएं
उनको हम सब शीश झुकाएं
पिता कठोर हैं उतने ही मृदल
जो नित पिता का आशीष पाएं
वह कर्म करें न पाछे पछताएं
सारी विपदा से वह बच जाएं
उन्हीं पिता के हम गुण गाएं
उनको हम सब शीश झुकाएं
पिता सृष्टि संतान का पिता ही जन आधार।
पिता की छाया मात्र से हो जाता उद्धार!।।