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9 Dec 2017 · 1 min read

परछाईं और सूर्य

यह जो परछाईं है मेरी,
कभी मेरे आगे,
कभी मेरे पीछे,
और कभी एकाकार।

यह कुछ रिश्ते भी है मेरे,
कभी खटास,
कभी मिठास,
और कभी एक समास ।

और एक मन भी है मेरा,
कभी कल में,
कभी आज में,
और कभी एक शून्य का एहसास।

मध्‍याह्न का वो सूर्य,
ठीक हमारे सिर के ऊपर चमकता है,
परछाईं नहीं दिखती है उस वक़्त,
मुझ में ही छिपी होती है,

काश

रिश्तों का भी सूरज होता,
रखता एक में स्वजनों को,
मन का भी एक सूरज,
समता संजोता भीतर में,

एक सूर्य एेसा भी देना भ्राता,
एकाकी से एक की,
राह जो हमें बताता।

२२ अक्तूबर, २०१७

Language: Hindi
493 Views
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