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29 May 2022 · 21 min read

मेरी (उनतालीस) कविताएं

1. कोई तो समझें

कोई तो समझें दिलो के दर्द को
लिखें हूए कवियों की, कलमों की ब्याख्या को
सुलग रहे मंन के भीतर इन अनगिनत जज्बातों को
कह – कहाँ रहे ठंड में कंपन, इन दर्दनाक आवाजों को
तलाश मिलों चल रहे, मुसाफिरो की मंजिलों को
आते हूए इन तूफानों की आहटो को
उजड़ते हूए किसानों के खेतों की ईन महेनतो को
कोई तो समझें दिलो के दर्द को ।
बिछड़ते रोते हूए अपनो के दर्द को
आँखों में छलक रहे इन जज़्बातों को
गूँजती किलकारी, भुख से बच्चों की
करुणामय आवाजो को ।
बारूदों के ढेरों पर बैठे सैनिको के आत्म – सम्पर्ण को
कोई तो समझे अमर बलिदानो के बलिदानो को
लोटे नही जो वापस, उन आँखों की राह देखती
अनगिनत सुहागिनों के बलिदानों को
देहज,जाती, धर्म के नाम से
लूटी हूई नारी के अभिमानो को
कोई तो समझें दिलो के दर्द को ।

2. कुछ मेरी, कुछ अपनी -कह गया आज यह चाँद

कुछ मेरी कुछ अपनी कहे यह चाँद
निहार रहा कब से- ओढ़े सफेद बादलो की
ये मखमली चादर, मेरे आंगन को
नजरों का प्रेम मिलन हो अब कैसे
आहिस्ता – आहिस्ता गुजर गया
मेरे मन के आंगन से
यह अधखिला खिला हुआ चाँद ।
है रुठा रुठा –
थोड़ा खुद में खोया हूआ यह चाँद
देखे निहारे टकटकी सा लगाए हुए
मन के मेरे इस ह्र्दय – दर्पण को
कुछ अपनी व्यथा, कुछ मेरी व्यथा
कह सुन – गया आज यह चांद ।
कभी दिख रहा, कभी छुप रहा यह चाँद
दामन में लिए- अपने हजारों उज्वलित खुशियां
सोया नहीं रुका नहीं अनगिनत वर्षों से
घर में मेरे घर कर गया आज यह चाँद ।
है सुबह की लालिमा की परछाई सा
ह्र्दय में लाखों ख्वाहिशो को जगाता हुआ
खुद रहा धधक – दर्द असहनीय लिये हूऐ
दिखा रहा, राह, राही को फिर भी
जमावाड़ा लिये तारों का यह चाँद ।
कुछ मेरी, कुछ अपनी –
कह गया आज यह चाँद ।।

3. अब में क्रांति लाऊं कहां

अब में क्रांति लाऊं कहां
नेताओं ने देश लूट चुका
नौजवान हमारा अब सो चुका
अब में क्रांति जगाऊं कहां ।
लगते जहां देश विरोधी नारे
चाहिए अभिव्यक्ति की आजादी
फेंके जाते सैनिकों पर पत्थर
ऐसा दूसरा देश में बतलाऊं कहां
अब में क्रांति लाऊं कहां ।
लूट खसोट की राजनीति
समाज बटा वर्गों में
धर्म के नाम पर होते दंगे
ऐसे में क्रांति, अब में जगाऊं कहां ।
लग रहे जहां फैशन के मेले
इज्जत अपनी छुपाए कौन कहा
चकाचौंध, धन-वैभव नशे की
बीता स्वर्णिम युग क्रांति का
देश भक्ति की ज्योत
अब जगाऊं कहां
अब में क्रांति लाऊं कहां ?

4. फिर प्रलय आएगी

मानव जब होगा
पूर्ण विमुख धर्म से
सज्जन खोने लगे सम्मान
सूर्य – चंद्रमा होने लगे विलुप्त
तो समझो –
फिर प्रलय आएगी ।
मंदिर – घरों में
जब होने लगे दुराचार
मिट्टी,ज्ञान, दैह का
होने लगे व्यापार
तो समझो –
फिर प्रलय आएगी ।

शकुनिया जब
चलने लगे पासै
मस्तिक में बढ़ने लगे
जब जीत का भ्रम
होने लगे अभिमानी
विमुख हो जाए
मानव धर्म सै
तो समझो –
फिर प्रलय आएगी ।
अपने चरम पर
जब पहुंचेगी हिंसा
स्वांस लेना
हो जाए दुर्लभ
होने लगे जब मानव
फिर गिद्ध कि तरह
तो समझो –
फिर प्रलय आएगी ।

मन – तन
हौ जाय अशांत
विलुप्त हौ जाय
प्रकृति निरमित् संसधान
तो समझो –
फिर प्रलय आएगी
बहने लगे जब
विपरीत नदियां, पवनें
गुम हो जाए
मंदिरों का शंखनाद
कालचक्र जब बदल लै करवट
तो समझो –
फिर प्रलय आएगी ।

श्वेत श्यामलरूप बनकर
कल्कि अवतार
फिर अपने को दोहराएगा
उपजित नव, निर्मित युग,
तब सतयुग कहलाएगा !!

5. पथिक

चल रहा हूं,
दुनिया की भीड़ में,
बंन कर पथिक,
मैं भी यहां,
हैं दिखते चेहरे
अनगिनत यहाँ,
कुछ खुश,
कुछ मुरझाए हुए,
ढूंढूं कैसे गम, खुषी,
मिट जाते हैं,
कदमों के निशाँ भी यहां,
चल रहा हूं,
बंन कर पथिक,
मैं भी यहां।

मसगूल दुनिया अपने में ही,
दिल का दर्द,
अपने छलकाऊ कहां,
छटपटा रही है जिंदगी,
मौसमों की तरह,
चंचल इस मन का,
ध्यान लगाऊं कहां,
चल रहा हूं,
बंन कर पथिक,
मैं भी यहां ।

ढूंढ रहा हूं, खोज रहा हूं,
हुं विचलित सा,
मोलभाव के इस जाल में,
लग रही बोलियां,
इंन्सानौ की भी यहां,
कुछ रिश्ते अनजाने,
कुछ जाने पहचाने,
चल रहा हूं,
निभा रहा हूं,
बनकर वक्त का,
मुसाफिर मैं भी यहां
चल रहा हूं,
बंन कर पथिक
मैं भी यहां !

6. तुम बिन, मैं व्यर्थ बेकार

तुम मेरी जीवन संगिनी
मैं तुम्हारा आधार
पड़ै कदम तुम्हारे
जौ मेरे आंगन में
महक उठा मेरा घर संसार
अनगिनत रूप तुम्हारे
धूप में बनी तुम मेरी परछाई
तुम ही शक्ति मेरी
तुम बिन मैं व्यर्थ, बेकार
तुम मेरी जीवन संगिनी
मैं तुम्हारा आधार ।

है बाँध ली प्यार की डोर
मैंने तुमसे
तुम सुर कै संगीत
मैं तुम्हारा साज
तुम संग मेरे हर दिन उत्सव
बिन तेरे जैसे
भंवर में फंसी
नोका कोई मझधार
तुम मेरी जीवन संगिनी
मैं तुम्हारा आधार ।

मैं तुम अर्धनारीश्वर
तुम रूप पार्वती
मैं शिव,
माता – पिता हमारे संसार
तुम बिन
मैं व्यर्थ बेकार !

7. बचपन वाली दीवाली

अब लौट कर
क्यों नहीं आती
वौ बचपन वाली दिवाली
वह फुलझड़ी वह आनार
वह फट, फट, फट
पटाखों वाली लडि
लियै हाथ, जैब मैं
लड्डू, खिल, खिलौनों
चेहरे पर मासूमियत
मुख में सबके लिए
Happy dipawali
अब लौट कर
क्यों नहीं आती
वौ बचपन वाली दिवाली ।

वह बोतल वाले रॉकेट
वौ अनार,वह फुस – फुस बम
डर वह पटाखों में
आग लगाने का
वह मां की डांट फटकार
चकरी वह थाली वाली
अब लौट कर
क्यों नहीं आती
वौ बचपन वाली दिवाली ।

बड़े हो गए हम
या रिश्तौ में
मिठास कम हो गई
वो बचपन वाली
दिवाली ना जानै
कहाँ गुम हो गई !
अब लौट कर
क्यों नहीं आती
वौ बचपन वाली दिवाली !

8. दिल में अजब सा आज शोर हुआ है

दिल में अजब सा आज शोर हुआ है
आज हम से अपना कोई दूर हुआ है
भीगी, भीगी मेरी यह पलके अब कहती हैं-
अब उनपे हमारा कहा जोर हुआ है
दिल में अजब सा आज शोर हुआ है ।

घिर, घिर आई है काले, काले यह बादल
मौसम यह अब मेरा घनघोर हुआ है
दिल में आज अजब सा शोर हुआ है ।

जी लेंगे यादों में हम तुम्हारी
रुसवाईयों पर किसका कब जोर हुआ है
दिल में अजब सा आज शोर हुआ है ।

होंगे तुम्हारे चाहने वाले हजार
पर मुझ सिरफिरे का कब कोई और हुआ है
दिल में अजब सा आज शोर हुआ है ।

ए दोस्त तुम्हारी खुशियां तुम्हें मुबारक
पर मेरी रातों की तन्हाईयों का
कब कहा कोई भोर हुआ है
दिल में अजब सा आज शोर हुआ है ।

तेरी यादें तेरी सूरत पर
लिखूंगा फिर एक नई गजल
टूटे हुए दिलों की कलमों पर
कब किसका जोर हुआ है
दिल में अजब सा आज शोर हुआ है ।

मैं राही खुद का अकेला ही
कब इस जीवन में
किसका कोई और हुआ है
दिल में अजब सा आज शोर हुआ है ।

9. हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी

हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी
देव तुल्य ईश भूमि का
अवतरित जहाँ गंगा
शिव के कैलाश का
इन असंख्य
हिंदू तीर्थ स्थलों का
इन ऋषि ज्ञानियों की
तपोभूमि का
हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी ।
तीर्थ स्थल बद्रीनाथ
केदारनाथ हरिद्वार का
नैनीताल की नंदा दैवी
अल्मोड़ा पिथौरागढ़
गौरव के इतिहास का
हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी ।
बागेश्वर की धार्मिक गाथाओं का
चंपावत मसूरी कि
पहाड़ों, नदियों की बहती
अद्भुत छटाओं का
हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी ।
पिथौरागढ़, उधम सिंह नगर
की भव्य संस्कृति का
इस ठंडे जलवायु
चीड़, बांस देवदार
हिम संचालित घाटी इन फूलों का
हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी ।
यहां की लोक कलाओं
विविध यहां के त्योहारों मेलों का
गोलू कत्यूर देवों
की ईश भूमि का
हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी ।
महान् जिया रानी
गढ़वाल कुमाऊं के
भव्य इतिहास का
हां मैं हूं प्रकृति प्रेमी
उत्तराखंड की इस
देव भूमि का !

10. नारी शक्ति

क्यों घूर रहे हो, भौंऐ तानै हुए
है समाज के अनुयाई
कहां गई तुम्हारी सभ्यता
कहां गयै तुम्हारै संस्कार
चीरहरण हो रहे हैं, फिर द्रोपदीयो के
बन गए हम, फिर मुक दर्शक
उठो जागो हे वीर छत्रियों
चीर दो सीने इनकै, भीम की तरह
ना बनो दुर्बल, ना बनो लाचार ।
कब तक देती रहैंगी परीक्षा
देवीया सीता, इस अग्नि कुंड में
क्यों सुन, सहन रहे हैं हम
इन धोबियों की, लांछन ताने जुल्म
नारी पर युगों से बारंम बार
उठो हे वीर छत्रियों
ना बनो दुर्बल ना बनो लाचार ।
दुर्बल अहसाय कोमल, नहीं यह नारी
ऋणीं हौ तुम इसके, कभी मातृत्व प्रेम
कभी दुर्गा काली रूप भी है इसके
अज्ञानी हो गए हैं हम
या ज्ञान हमने पूर्ण पा लिया
यह मेरे भारत की कैसी विडंबना
बेटी बचाओ नारा भी भारत को दे दिया
उठो है वीर छत्रियौं
ना बनो दुर्बल ना बनो लाचार ।
क्यों पट्टियां बाध ली आंखों में
क्यों सो गए हम गहरी नींद
उठो है वीर छत्रियों
है रगौ में बसा तुम्हारे खून
तुम मैं भी है भीम
तुम मैं भी है कृष्ण
उखाड़ फेंको उन हाथों को
जो करे नारी जाती का खून !!

11. उठ चल दो कदम

मौसम आज रंगीन हुए पड़े हैं
धरातल पर उतर आये तारे
आसमान अब बिरान हुए पड़े हैं
उठ चल दो कदम
भूल गमें जहाँ
देख मन की आंखों से
खुशियों के यहां
निशान पड़े हुए हैं ।
क्यों जीना क्यों रोना
सिसक – सिसक कर
तकदीर बदलने के
जब हमारे पास
इम्तिहान पड़े हुए हैं ।
उठ चल देख
मौसम आज रंगीन हुए पड़े हैं
धरातल पर उतार दिया चांद
मुट्ठी में आज आसमान पड़े हुए हैं
रख हौसला अपने ऊपर
सूरज को दिखा दे अपनी गर्मी
चाहे पैरों में हमारे
छालों के निशान पड़े हुए हैं ।
चल ऊड़ पंछी
अपने घरौंदे से
खुश रहने के यहां लाखों
जहान पड़े हुए हैं
तेरा क्या था क्या लाया
सीख वही पुरानी
निर्भर तुझ पर
तेरा ही जीवन
एक तरफ मंदिर,
एक तरफ शमशान
पड़े हुए हैं ।
उठ चल है मानव
जीने व सिखनें कै यहाँ
अनगिनत निशान पडे़ हुए हैं !!

12. मुबारक तुमको तुम्हारी आजादी

मुबारक तुमको तुम्हारी आजादी
खींच लो रेखाएं चाहे तुम
कागज पर कितने भी विकास की
अशिक्षित, अहसाय लाचार गरीब
देश की आधी आबादी
मुबारक तुमको तुम्हारी आजादी ।

पिट लो ढोल ढिंढोरा
कितने भि अपने बखान की
सच छुपता नहीं, सच मिटता नहीं
चाहे पट्टीया बधवा दो, आंखों में समाज की
मुबारक तुमको तुम्हारी आजादी ।

हैं घात लगाये, कदम-कदम पर
दौलत जुल्म के ये ठेकेदार
घूर रहे आंखें ताने हुए, मुखौटा पहने धर्म का
सर लिए रावण जैसे हजार
मुबारक तुमको तुम्हारी आजादी ।

धर्म, कुल, ऊंच, नीच
शब्द यहाँ भेद भाव जणित
है बटें हुए यहां मानव, सिक्को के दो भागों पर
यह चकाचौंध इन महलो में
झोपड़ियों में अब भी उजाले नहीं ।
फिर यह कैसी आजादी ?
मुबारक तुम्हीं को, तुम्हारी आजादी !

13. हां मैं भी कवि हूं

हां मैं भी कवि हूं
लिख लेता हूं, आडि तिरक्षि लकीरें
जिंदगी के बनै हुए पन्नों पर
सीख रहा हूं चलना संभलना
जिंदगी व मृत्यु के बिच पड़ाव पर
हुं शीश झुकाकर मैं भी खड़ा
ज्ञान, ज्ञानियों के इस बाजार में
कभी सीख लैता हूं तैरना
कभी बह जाता हूं, जिंदगीयों के बहाव पर ।
है लालसा मेरी भी, अपना हौ एक दर्पण
इसलिए देख लेता हूं, बंद आंखों से भी
यै इंद्रधनुष्यि रंग
हां मैं भी कवि हूं ।
लगा हूं ना जाने
किस जिंदगी की उधेड़-बुन में
कुछ रिश्ते यहां उलझे, कुछ सुलझै हुए
कुछ शामें गई है ढल, कुछ अभी भी बचि हैं
जिंदगी के लैनैं इम्तिहानों में
हां मैं भी क्या कवि हूं ?

14. मैं और मेरा यह पहाड़

मैं और मेरा यह पहाड़
पर्वतों से पिघलता हुआ यह बर्फ
कहीं पर हिम वाली चोटी
कहीं पर गंगा को छूता हुआ हरिद्वार
गांव -गांव हैं सुशोभित,यहां हरियाली से
यह कोहरे से लिपटे हुए घने जंगल
यह रंग -बिरंगे पंछी यह झरने
यह आम, आरू, चीड़ पेड़ देवदार
मैं और मेरा यह पहाड़ ।
यहां निर्मित मिट्टी लकड़ी वाले घर
ऊचैं नीचे टेढ़े-मेढ़े खेत, रास्ते
पल-पल बदलती हुई ऋतुऐ की यहां बहार ।
यह हाथ को छूता हुआ सूरज
यह कानों में गूंजता हुआ –
पंछियों, हवाओं का संगीत
है सुशोभित जहां हिमालय
तेरा स्वर्ग मेरा स्वर्ग – मैं और मेरा यह पहाड़ ।
यहां पंख फैलाते अनगिनत पंछी
ऋतुऐ आए जहां बदल-बदल
यह रिम -झिम बारिश
यह ठिठुरते, कंपन वाली ठंड
यहां त्योहारों का लगा अंबार
मैं और मेरा यह पहाड़ ।
यह मैघौ का – फैला हुआ शफेद चादर
यह खैतो, पैडौ, में उडते –
किट, पतंगे, पंक्षी
यह हरै भरै – खेत, फल -फूल,घने जंगल,
मैं और मेरा यह पहाड़ !!

15. कुछ मैं कहूं अपनी, कुछ तुम कहो

कुछ मैं कहूं अपनी, कुछ तुम कहो
जिंदगी बोझिल ना हो जाए चलते-चलते
कभी मैं खुश रहूं, कभी तुम खुश रहो
बहुत मुश्किल है किसी का
हाल ऐ दिल सुनना इस जमाने में
करने गुफ्तगू – कभी फुर्सत में तुम रहो कभी मैं रहूं ।
माना हैं चेहरे यहां पर, सब के अलग – अलग
कभी इन्हें तुम पढ़ो कभी हम पढ़ें
ना उलझने दो यारो –
बंद पड़ी हुई गाठों को
थोड़ा सा इसमें रिश्तो की मिठास
तुम भरो थोड़ा हम भरे
बड़ी कशमकश है जिंदगी में
कुछ मैं कहूं अपनी, कुछ तुम कहो ।
है जहां गम और खुशी से
रिश्ता जिंदगी भर का
थोड़े से रंग इसमें, तुम भरो थोड़ा हम भरै
ना हो जाए जिंदगी बोझिल चलते-चलते
किसी का गम हम ले चलें
किसी का तुम ले चलो !

16. पहाड़ों की बारिश

पहाड़ों की बारिश का
यह मौसम सुहावना
जमी पर गिरती यह निरमल बूंदै
मेंढक की वह बोली टर- टर
आसमान में छठा बिखेरते
यह रंग-बिरंगे तारे
कानों में मधुर ध्वनि यह
बारिश की टप, टप, टप ।
पेड़ों के पत्तों कि यह कैसी सरसराहट
निकलता चूल्हे से वह धुआ
रोशनी बिखेरते, जुगनुओं की वह फुसफुसाहट
मौसम आया पहाड़ों में यह अलबेला ।
चोखट पर दस्तक देता
जैसे मौसम जाड़ों का
कहीं पर है धुंध, कहीं पर गिरे यह पाला
आई पहाड़ों की मिट्टी से कैसी
यह अपनेपन की खुशबू
फिर याद आया मौसम
पहाड़ों की बारिश का वौ भिगोनै वाला ।

17. यादें

जैसे यादों में बसी, किसी की मुमताज
रहोगी हर पल मेरे हृदय में, तुम कल और आज
नयन तेरे जैसे, सीप के मोती
अक्स तेरा देख, बजे दिल में साज
मूरत तुम देवी की, मेरे मन मंदिर में
तुम्हारा ही वास ।
छुवन तुम्हारा बहता पानी,काया तुम हो फूलों की
विषम परिस्थितियों में, तुम्हारे भीतर दृढ़ विश्वास
जैसे यादों में किसी की मुमताज,
मेरे हृदय में, वैसे ही तुम्हारा वास !

18. गुलाब

पन्ने पलटते -पलटते आज
उनका रखा हुआ गुलाब मिल गया
जिंदगी को आज ईस मोड़ पर
उनसे पूछा हुआ जवाब मिल गया ।
कुछ पत्ते थे मुरझाए हुए
कुछ मैं खुशबू अभी भी बाकी रह गई
बस विराने ए जिंदगी –
फ़लसफ़ा यादें जिंदगी ही रह गई ।
कमबख्त बड़ा बेदर्द है यह वक़्त
आज फिर मीठा जख्म यह दे गया
कुछ धुंधली यादों से आईने पर
उनका अक्स फिर उकेर गया
पन्ने पलटते -पलटते जिंदगी के
बस अब यादों में सिर्फ –
उनका दिया गुलाब ही रह गया !!

19. मां

आज फिर अपनी मां की
गोद में सोने का मन करता है
बिन बताए आज फिर
रोने का मन करता है ।

आज फिर बचपन की यादों में
खो जाने का मन करता है
वह घुटनों के बल चलते हुए
नन्है – नन्हे कदम, चलने को मन करता है ।

आज फिर अपनी मां की लोरी
सुनने को मन करता है
आज फिर अपनी मां की
उंगली पकड़ कर चलनै कौ मन करता है ।

क्या हुआ बड़े हो गए हैं तो
आज फिर अपनी मां के हाथों का
खाने का मन करता है ।

उल्झी है जब से जिंदगी- जिंदगी बनाने में
आज फिर अपनी मां के लिए
कुछ कर गुजरने का मन करता है
आज फिर अपनी मां की
गोद में सोने का मन करता है ।

20. पहाड़ों के नारी की व्यथा

कैसे सुनाऊं पहाड़ों के नारी की यह व्यथा
हाथ मैं दातूल, कमर में कुटव
चहेरे पर थकान का नहीं कोई नामोनिशा
भोर उठे दिनभर खेतों में लगे
क्या मौसम धूप, क्या मौसम वर्षा
कैसे सुनाऊं पहाड़ों के नारी की यह व्यथा ।

त्याग और बलिदान की
देती हमें एक नयी परिभाषा
पहाड़ों के परिवार कि डोर
कि बधि इनहि से आशा
ना चिड़चिड़ाहट है चहेरे पर
ना किसी से गिला शिकवा
कैसे सुनाऊं पहाड़ों के नारी की यह व्यथा ।

21. लौट आना अपने पहाड़

वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़
मिलेगा तुम्हे अपनापन और बेशुमार प्यार
भूल चुके हो जो तुम वह रिश्ते नाते
बाहें फैलाकर करेंगे वै तुम्हारा इंतजार ।

बहुत सहन किया मैंने खालीपन तुम्हारा
खोल देना अपने बंद दरवाजे खिड़की और द्वार
यह चौखट यह हरे भरे खेत
क्या अब नहीं है तुम्हारा संसार
वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़ ।

बहुत हुआ पहाड़ौ मैं यह
अशुविधा शब्द का मायाजाल
कभि तौ रहे होंगे यह तुम्हारे
जीवन बनाने के आधार
रूबरू कराना अपनी सभ्यता संस्कृति से
लेकर आना साथ में अपना परिवार
घूमना और दिखाना फूल, बुरांस
पेड़ हमारै यै चीड़, देवदार
वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़ ।

ऐसे छोड़ कर बनाओ ना इनको खंडर
कौन जाने क्या छुपा है
वक़्त के गर्भ के अंदर
वो परदेशी लौटकर आना अपने पहाड़ ।

22. यादों के मंजर

ये यादों के मंजर भी
कितने अजीब होते हैं
याद उन्ही को करते हैं
जो दिल के करीब होते हैं ।

बुझी-बुझी सी हमारी
सुबह- शाम होते है
दिलो -दिमाग पर यादौ के
स्याही जैसे निशान होते हैं ।

ये यादों के मंजर भी
कितने अजीब होते हैं ।
कभी हंसते,कभी रोते चहेरे पर
यादों की हमारी पहचान होते हैं ।

दुख -सुख के ये
हमारे महेमान होते है
किसि के लिये बिछरन
तो किसि कि जान होते है ।

एकांत- तनहाई में ही
न जाने ये क्यों याद आते है
हर समय याद
अपनो कि दिला जाते है
ये यादों के मंजर भी
कितने अजीब होते हैं ।

23. उफ्फ तेरी ये यादें

उफ्फ तेरी ये यादें
मुझे कितना रुलाती हैं
दिन, पहर कट जाते हैं मेरे
जिंदगी की कश्मकश मैं,
रातों की इन मेरी तन्हाईयों मैं
घिर आती हैं तेरी यादें
बनकर काले मेघ बादल,
जब भी देखता हूं
खुद को मैं दर्पण मैं
खुद को अधूरा ही पाता हूं,
तुम हो तो प्रिये, मैं हूं
बिन तेरे जीवन
कैसे हो रहा मेरा ब्यतीत
कब तुमसे मैं यह कह पाता हूं,
उफ्फ तेरी ये यादें
मुझे कितना रुलाती हैं ।

खोया, खोया सा रहता हूं
होकर जुदा तुमसे,
बिन तेरे,
खुद को तन्हा ही मेने पाया है
छांव मैं भी,
धुप ही धूप मेरे हिस्से आया है,
कमबख्त तेरी यादें
जन्दगी का मेरा एक पहर
मुझसे ले जाती हैं,
हर रात की मेरी ये तनहाइयां
मुझे नया एक किस्सा
तेरा याद दिला जाती हैं,
उफ्फ तेरी ये यादें
मुझे कितना रुलाती हैं ।

24. कौन जाना चाहता है अपना गांव छोड़कर

कौन जाना चाहता है
अपना गांव छोड़कर
यह खेत, खलियान,
हरे, भरे पहाड़ छोड़कर,
मेरे बूढ़े मां बाप, बीवी बच्चे
सारे रिश्ते नाते दार छोड़कर
कौन जाना चाहता है
अपना गांव छोड़कर ।

यह बगवाई कौतिक
पहाड़ों के त्योहार छोड़कर,
जुड़े हुए दिलों की
मीठी याद छोड़कर,
अपने मां की आंचल
की छाव छोड़कर,
यह गांव की मिट्टी की
यादों की बारात छोड़कर,
कौन जाना चाहता है
अपना गांव छोड़कर ।

यह पहाड़ों की बर्फी वाली चोटी
यह स्वर्ग जैसी कायनात छोड़कर,
यह हमारे बुजुर्गों के
मकान बने हुए छोड़कर,
यह बहते हुए नदी झरनों
की सौगात छोड़कर,
कौन जाना चाहता है
तेरा गांव, मेरा गांव छोड़कर ।

25. अपना टाइम कब आएगा ?

अपना टाइम कब आएगा ?
जब देश दीमक के भ्रष्टाचार से खत्म हो जाएगा,
जब राह चलती नारी उठा ली जाएगी
ओर बेआबरू होगी न्याय के कटघरे में
चंद पैसों से खरीदे हुए लोगों द्वारा,
अपना टाइम कब आएगा ?

जब देश का किसान रो रहा होगा
अपने ही उगाए हुए अन्न पर,
मजहब जाति धर्म के नाम पर
जब देश बट रहा होगा,
अपना टाइम कब आएगा ?

जब सीमाओं की सुरक्षा के लिए तैनात जवान
प्रतीक्षा करेगा दुश्मन पर गोली चलाने की,
जब भूख और शिक्षा से
गरीबों के बच्चे खो रहे होंगे अपना हक,
अपना टाइम कब आएगा ?

जब लग रही होंगी
अस्पतालों में लंबी मरीजों की लाइनें,
ढो रहे होंगे जब लोग लाशें अपनों की मिलों
नेताओं के विकासशील किताबी भाषणे से,
अपना टाइम कब आएगा ?

जब धर्म पर भारी हो जाएगा झूठ
हर तरफ मच रही होगी लूट,
धरती हो जाएगी बंजर
या सूर्य, चंद्रमा हो जाएंगे लुप्त ?
अपना टाइम कब आएगा ?

जब यह पीढ़ी नशे में धुत होकर
आएगी मदिरालायो से,
अपनी संस्कृति अपने संस्कार
जा रही होगी भूल,
हो रहा होगा पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला
हर तरफ धुआं, धुआं
Disco, नाच मैं झूम के आएंगी हर बाल, बाला
अपना टाइम कब आएगा ?

26. टूटा, टूटा मेरा दिल है

टूटा, टूटा मेरा दिल है
टूटी, टूटी मेरी सुबह, शामें हैं
टूटी, टूटी मेरी ये उम्मीदें हैं
अब तू ही बता
बिन तेरे माहिया
जिया कैसे जाए, ऐ, ऐ, ऐ
टूटा, टूटा मेरा दिल है ।
बिन तेरे रहा मैं कितना अधूरा
खुद मैं ही खोया
हर पल तेरे लिए रोया
अब तू ही बता माहिया
दिल को कहां ले जाए, ऐं,ऐं, ऐं
टूटा, टूटा मेरा दिल है ।
ये तेरी बेरुखी
ज़ख्म मेरे नहीं भरती
ये तेरी कैसे मजबूरी
माहिया अब तू ही बता
टूटा, टूटा मेरा दिल है ।

27. दो कदम पीछे तुम चलो

दो कदम पीछे तुम चलो
दो कदम पीछे हम चले
किसी को साथ तुम ले चलो
किसी को साथ हम ले चले
बहुत हो गई दौड़ पैसा कमाने की
किसी की खुशियौ कै साथ तुम चलो
किसी की खुशियौ कै साथ हम चलें
भुला दो आपसी रंजिश को
किसी को गले तुम लगा लो
किसी को गले हम लगा ले
बहुत हो गया जाति, धर्म का झगड़ा
किसी के लिए इंसान तुम बनो
किसी के लिए हम बने
तोड़ दो लाज और शर्म का पहरा
किसी के लिए फरिश्ते तुम बनो
किसी के लिए हम बने
मिटा दो यह उच्च, नीच की भावना
किसी के गले तुम लगो
किसी के गले हम लगे
दो कदम पीछे तुम चलो
दो कदम पीछे हम चले ।।

28. बिछड़कर हमसे, वह भी तो रोई होगी

बिछड़कर हमसे, वह भी तो रोई होगी
उजालों में ना सही –
अंधेरों में तो – हमारी याद में खोई होगी ।

बयाँ बेशक ना सही, हमसे दर्दे दिल की याद
पर रातों को आंखों में उनकी –
यादों की चुभन तो रही होगी ।

दिखा लो मेरी जाना चाहै तूम –
जमाने को कितना भी, अपना बनावटी चेहरा
पर खुदा के आगे – जुबाँ पै तुम्हारी
सलामती की दुआ तो हमारी रही होगी ।

कर दिया इस वक्त ने हमें बहुत बेबस
पर धुंधलै से वक्त के चैहरौ पर
हिचकियों की बरसात तो हुई होगी ।

है खुदगर्ज मेरी जाना – यह बहुत जमाना
बुराईया हमारी भी- तुम सै किसी ने कही होगी ।
बिछड़कर हमसे वह भी तो
दरवाजे की चौखट पर – खड़े हो कर रोई होगी !!

29. अब तो दौड़ कर, आओ हे राम

भक्त भगवान से—-

थकने लगे हैं
अब तो दुआ वाले हाथ
हुआ चारों तरफ
पाप का हाहाकार
कब तक करोगै-
क्षीरसागर सागर में विश्राम
अब तो धरती पर
आ जाओ हे राम ।

बना दिए हैं असंख्य
मंदिर – मस्जिद और गुरुद्वारे
कब तक ऐसे ही
मौन खड़े रहोगे राम
अब तो दौड़ कर
आओ हे राम ।

हो रहा है दुनिया में बहुत पाप
धनुष-बाण लेकर
अब तौ आओ मेरे राम
बसे हैं यहां पर
मन में सबके रावण
ना है कोई रहा यहा
सच्चा भक्त विभीषण
कैसे इनको अब
पहचानोगे राम ।

नहीं रहा अब वह दूध माखन
मदिरा पीते हैं
अब लोग सुबह शाम
कब तक आंखें
यु हीं बंद रखोगे राम
अब तो धरती पर –
आ जाओ हे राम ।

ना रहा अब कोई भक्त यहां
सीना चीर कर राम दिखाने वाला
कब तक धीरज –
हमारा बधाओगै राम ?
अब तो दौड़कर आओ हे राम ।

भगवान भक्त से ——-

सब मगन और मदहोश हैं
यहां अपने मैं ही
ना लेता अब कोई मेरा नाम
तुम ही बताओ –
कैसे मैं आऊं
धरती पर बनकर
जय श्री राम ?

30. जिंदाबाद, जिंदाबाद ऐ मेरे वतन

जिंदाबाद, जिंदाबाद
ऐ मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद
तेरे लिए ही जीवन यह मेरा
तुझ पर ही कुर्बान मेरी यह जान
जिंदाबाद, जिंदाबाद
ऐ मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद

लहू का मेरा एक, एक कतरा
तुझ पे ही कुर्बान
जिंदाबाद जिंदाबाद
ए मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद

रहूं ना रहूं मैं
बस तू रहे आबाद
जिंदाबाद, जिंदाबाद
ए मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद

हो चाहे कितने ही
तेरे पथ पर कांटे हजार
उखाड़ फेंकूंगा
तुझ पे करके अपनी जाँ न्योछावर
जिंदाबाद, जिंदाबाद
ए मेरे वतन तू रहे जिंदाबाद ।।

31. ओ माही मेरे, ओ माही मेरे

ओ माही मेरे, ओ माही मेरे
क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा
दिल मेरा कोई पत्थर ना था
मैं साथ तेरा छोडूंगा
कब ऐसा मैंने बोला था ।

ओ माही मेरे – ओ माही मेरे
तेरे वादे सब वो झूठे थे
झूठी तेरी कसमें थी
झूठे तेरे वो इरादे थे
ओ माही मेरे – ओ माही मेरे
क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा
दिल मेरा कोई पत्थर ना था ।

मैं शीशा तुझको
समझ कर अपना
अक्स अपना तुझ में देखता था
ओ माही मेरे -ओ माही मेरे
दिल में तेरे
दरिया बनकर मैं रहता था
क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा
दिल मेरा कोई पत्थर ना था ।

नैन मेरे अब रोते हैं
दिल बन दरिया बहता है
मैं छोडूंगा साथ तेरा
कब ऐसा मैंने बोला था
ओ माही मेरे – ओ माही मेरे
क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा
दिल मेरा कोई पत्थर ना था ।

वह तेरे मेरे रैन, बसेरे
अब सुने, सुने लगते हैं
जीने मरने की वह कसमें
अब धूमिल, धूमिल से लगते हैं
ओ माही मेरे – ओ माही मेरे
क्यों तोड़ा तूने दिल मेरा
दिल मेरा कोई पत्थर ना था ।

32. या मुझे तू दे, दे ज़हर

या मुझे तू दे, दे ज़हर,
पर मेरे संग बेवफ़ाई ना कर
मेरे से किए हुए, वादों की
यूं तू जग हसाई ना कर ।
या मुझे तू दे, दे ज़हर —

मुझे है पता तु जी लेगी मेरे बिन
पर मेरे संग भी, यूं रुसवाई ना कर
माफ है तुझे तेरी ये सारी खताये
पर मेरी खताओं का भी
अपने लबों पर जिक्र ना कर ।
या मुझे तू दे दे ज़हर —

तुम रूठे हो हमसे, तो मना भी लेंगे हम
पर यूं तो तू मेरे से बेवफ़ाई ना कर
मेने चाहा तुझे अपनी साँसों से जायदा
यूं मेरी सांसो से अब तु जुदाई ना कर ।

जाना है तो, तू जा बड़े शोक से
पर इस बिष्ट की,
मेरे महबूब यूं जग हसाई ना कर ।
या मुझे तू दे दे ज़हर —

33. आना तुम प्रिये

सीने से तेरी तस्वीर लगाए बैठे हैं
तेरा दिया हूआ खत,
अभी भी तकिए के नीचे दबाए बैठे हैं ।

कम्भख्त बहुत याद आती हो तुम
इन सर्द रातों मैं,
इन सुखी हूई लकड़ियों की जगह
अपना दिल तुम्हारी याद मैं जलाए बैठे है ।

तुम वादा तो करो मिलने का
मेरी खिड़कियां, दरवाजे, आंगन भी
तेरे आने की आस लगाएँ बैठे हैं ।

यह ज़ालिमों के शहर में,
एक तिनके की तरह, मेरी यह जिंदगी
हर कोई हाथ मैं यहां चिंगारी दबाएं बैठे हैं ।

आना तुम प्रिये, खुद से भी बचकर
तेरे मेरे इश्क के,
ना जाने कितने दुश्मन घात लगाए बैठे हैं ।

34. इरादा है क्या

यूँ जो तुम मौन खड़े हो
कोई तूफान लाने का इरादा है क्या,
हाथों मैं अपने छुपाए क्या बैठे हो
अब दिल मैं मेरे खंजर,
चलाने का इरादा है क्या ।

पहले तो मिलते थे, गले लगकर
अब दूर से ही,
तोबा करने का इरादा है क्या ।
ये झुकी नजरें तुम्हारी कहती हैं
इन नजरों का,
किसी ओर की नजरें उतारने का इरादा है क्या ।

हम तो मर जाएंगे,
तुम्हारी बेवफाई से ही
यूँ चुप रहकर, हमें मारने का इरादा है क्या ।

यूँ जो तुम मौन खड़े हो
अब कोई तूफान लाने का इरादा है क्या ।

35. फूल

मैं जब भी किसी फूल को देखता हूं
मुझे उस से हो जाती है घृणा
उस फूल ने, ना जाने
कितने दिल जोड़ने के बाद तोड़ दिए होंगे
वह प्यार करने वाला कितना बेचैन हूआ होगा
और ना जाने कितनी रातें उसने काटी होंगी
बिना खाये, सोये हूए उनके लिए
कोई माँ, बाप का सहारा लटक गया होगा
या पिया होगा उसने ज़हर
किसी की बेवफाई में
मैं जब भी देखता हूं
जब भी ऐसा कोई फूल
मुझे उस से हो जाती है घृणा ।

36. ओहो !! मेरी यह सोच !!

मेरे घर के आंगन में है एक गुलाब
उसमें हैं अनगिनत काँटे
मैं हर रोज उस गुलाब से काँटे निकालता हूँ
और दफन कर देता हूँ मिट्टी में
एक दिन उस गुलाब से
सारे काँटे निकल जाएंगे
ओर सिर्फ बचेगा वह
बिना काँटे वाला गुलाब ।

“क्या मैं भी ऐसा बन सकता हूँ ?”
ओहो !! मेरी यह सोच !!

37. वेदना स्त्री की

मैं सहना चाहता हूं वेदना
प्रेम में धोखा खाई हुई किसी स्त्री की तरह,
मैं करना चाहता हूं इंतजार
बॉर्डर पर लड़ते हुए सैनिक के स्त्री की तरह,
मैं सहना चाहता हूं दर्द
प्रसव पीड़ा से जूझती हुई किसी स्त्री की तरह,
मैं करना चाहता हूं प्यार
मां द्वारा जैसे अपने बच्चे को,
मैं करना चाहता हूं घृणा
अपने पति द्वारा मार खाती हुई किसी स्त्री की तरह,
मैं महसूस करना चाहता हूं वह जीवन
जो जीती है उम्र भर एक विधवा,
मैं पाना चाहता हूं एक मनपसंद वर
जो रखती है एक प्रेयसी अपने प्रेम के लिए उपवास,
मैं भी हो जाना चाहता हूं वृद्ध कार्य करते-करते
उस महिला की तरह –
जो करती है कार्य अपने परिवार के लिए,
मैं भी छोड़ देना चाहता हूं वह मोह माया
जैसे छोड़ आती है एक दुल्हन –
शादी के बाद अपने पहले परिवार की,
मैं भी मर जाना चाहता हूं वियोग में
उसी तरह जैसे एक स्त्री मरती है
अपने पति के मर जाने के बाद ।।

कभी-कभी मैं सोचता हूं
क्या यह मेरे लिए संभव है
शायद नहीं –
क्योंकि मैं एक पुरुष हूं !!

38. उफ्फ तेरा यह दर्द

हम दोनों की मुलाकात नहीं होनी थी
उस सड़क के मोड़ पर
काश तुम मुझे उस समय
कोई तवज्जों ना देती ,
हम दोनों को नहीं मिलना था उस जगह
जहाँ मिलते हैं अभी भी प्रेमी युगल
हमनें नहीं देखने थे वो सपनें
जहाँ अभी भी कई सपनें
तैर रहें हैं , भावनाओं के आसमान मैं ,
तुम मुझे जनझोर कर कह देती उस समय
या डाट देती , तो ये बातें का सिलसिला न चलता
तो , तुम , ओर मैं , वो सपनें नहीं बुनते ,
जब , जब भी हम मिले
तो तुम कह देती उस समय
ये सारी बातें –
जो आज हम , तुम कह रहें हैं एक दूसरे को
दिल टूटना , सपनें , बिखरना , बच जाता आज ,
आज तुम जो दर्द झेल रही हो मेरे दिए हुए
मैं वह दर्द महसूस करूँगा
कल जब भगवान तेरी जगह मुझे भेजगा ।

39- जिंदगी

जिंदगी में धोखे मिलने भी जरूरी होते हैं ।
इसी से अच्छे बुरे की पहचान होती है ।।

नोका उसी की पार होती है ।
जिनको रास्ते में तूफान मिलते हैं ।।

गिरती हुई दीवारों को,
भला कौन देता है सहारा ।
गिरने के बाद ही मकान खड़े होते हैं ।।

बुझ जाती है लो अक्सर तूफानों में,
जो बुझी लो बने चिंगारी करें रोशन जहां
उसी की तो वक्त में पहचान होती है ।।

ए बिष्ट -कलम से ही गिर जाती है बड़ी-बड़ी दीवारें ।
इन जंग लगी तलवारों में कहां इतनी जान होती है ।।

इन धर्मो के नामों में क्या रखा है ।
आचरण से ही इंसान की पहचान होती है ।

Language: Hindi
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