न ज़िन्दगी से हम थे हारे
मापनी – २२ २२ २२ २२
पदपादाकुलक छंद
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न ज़िन्दगी से हम थे हारे
दूर हुए हों भले किनारे
भूख से तड़फते बच्चे वो ।
दर दर फिरते मारे मारे ।।
धूप हुई आज तेज़ इतनी ।
छाँव ढूंढते रहते सारे ।।
घूमते रहे आस पास ही
माँ के बच्चे प्यारे प्यारे ।।
बच्चे हो माँ के कैसे भी !
है माँ की आँखों के तारे !!
सज धज कर बैठी है सजनी
घर आएंगे बालम न्यारे ।।
पढ़ना होती अच्छी आदत !
ये लेखन भी खूब निखारे ।।
** आलोक मित्तल उदित **
** रायपुर **