न्याय तुला और इक्कीसवीं सदी
सुनो गाँधारी!
काश! ये न्याय की तुला
तुम्हारे हाथ में न होती
हाँ! मैं ठीक कह रही हूँ।
जब तक तुला
तुम्हारे हाथ में नहीं थी
तब तक होता था न्याय।
सही और सच्चा न्याय।
राजा-महाराजा,
गाँव-टोली के मुखिया
पेड़-पौधों के सहारे भी
न्याय कर लेते थे
ऐसी बहुत-सी कहानियाँ सुनी हैं मैंने
पर अब तो
तुला में
पड़ जाते हैं सोने-चाँदी के बाट
जिन्हें तुम्हारी
पट्टी बंधी आँखें देख नहीं पातीं,
या जानबूझकर देखना नहीं चाहतीं
पट्टी तो तुमने स्वेच्छा से बाँधी थी।
सच बताना गाँधारी!
किसने दी यह तुला तुम्हारे हाथों में?
तुम्हें लगा होगा
इसका लाभ
तुम्हारे सौ अविवेकी और
स्वेच्छाचारी पुत्रों को मिलेगा
पर नहीं
वहाँ भी तुम्हारा काम
ड्डष्ण ने बिगाड़ दिया
और कर दिया तुम्हारे वंश को निर्मूल
इसीलिए
ड्डष्ण को दे डाला तुमने
वंश नाश का श्राप
पर हाँ!
आज
इक्कीसवीं सदी में
तुम्हारे सभी पुत्र
उठा रहे हैं लाभ
तुम्हारे इस जबरदस्ती ओढ़े
अंधेपन का
क्योंकि न्याय की तुला
आज भी तुम्हारे ही हाथ में है
और है
तुम्हारी आँखों पर बंधी पट्टी।
बधाई हो।