— निर्दई इंसान —
अपने सुख की खातिर
बन रहा है हैवान
देखो कैसे कैसे अब
निर्दई बन रहा इंसान
धरती की हरियाली को
नित काट रहा है हैवान
यहाँ वहां अपने सुख साधन
की खातिर ,
फिर भी बन रहा अनजान
कभी सड़क किनारे
बैठ छाँव ले लेटे थे बड़े बड़े
जब से आया नया युग
हिल गयी सब पेड़ों की जड़े
जल्दी जल्दी के चक्कर में
आज बन रहा है शमशान
घर पहुँचने से पहले सड़क से
मरने की खबर आ जाती निज धाम
तेरा किया तेरे सामने ही आना था
जल्दी जल्दी तो बस इक बहाना था
कर दी भूमि बंजर कैसे उगे अनाज
एक दिन रोयेगा जब नही बजेगा साज..
अजीत कुमार तलवार
मेरठ