### नारी, तुम शक्ति हो !
### नारी, तुम शक्ति हो !
युग बीते, अंधकार छँटे, अज्ञानता हटी ।
शिक्षित हुए, ज्ञानी बने, साक्षरता बढ़ी ।।
लोग, कुटुंब, समाज की विवशता घटी ।
जग में बड़ा परिवर्तन की चंचलता उठी ।।
हर तरफ यूँ बदलाव की लहर कौंध गई ।
देश-विदेश की सारी प्रजा देख चौक गई ।।
नारी-सम्मान व समानता किंतु लौट गई ।
नर-प्रवृत्ति कोमल नारी-मन को रौंद गई ।।
पुरूष-समाज में पुरूषों का बोलबाला है ।
पुरूष वहशी, दरिंदा व मन का काला है ।।
बुद्धि, विवेक, विचारों पर पड़ा पाला है ।
मन में कुविचार, मस्तिष्क में घोटाला है ।।
गैर नारी को बहन कहता इक छलावा है ।
गैर माँ को माँ कहता उसका भुलावा है ।।
वह मौका परस्त व हवस का पुजारी है ।
वह बड़ा जुल्मी और बड़ा अत्याचारी है ।।
तुम शक्ति, जग-जननी, जगत-माता हो ।
तुम देवी, पूजनीय मानव-जन्मदाता हो ।।
तुम नेकी, संस्कार व संस्कृति प्रदाता हो ।
तुम शिष्टता व श्लीलता की निर्माता हो ।।
तुम्हें ही सौम्यता का बीज बोना होगा ।
अंदर व बाहर से भी तुम्हें लड़ना होगा ।।
तुम्हें ही इस समाज को बदलना होगा ।
अपना बचाव अब आपही करना होगा ।।
अब हो जाओ तैयार क्यूँ करती देरी हो ।
उठाओ कटार मन में नहीं हेरा-फेरी हो ।।
तेरा ही बोलबाला जग में चौतरफ़ा हो ।
तेरे पक्ष में अब हर निर्णय एकतरफा हो ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
07. 06. 2017