Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
28 Aug 2024 · 7 min read

नाइजीरिया में हिंदी

नाइजीरिया में हिंदी

मुझसे कहा गया है कि मैं उपरोक्त विषय पर कुछ लिखुं , तो यह प्रश्न ही मुझे बहुत हास्यास्पद लगता है। अक्सर लोग जब अफ़्रीका के बारे में पूछते हैं तो ऐसा लगता है जैसे वह किसी राष्ट्र के बारे में पूछ रहे है, न कि किसी महाकाय महाद्वीप के बारे में ।

कहा जाता है कि पूरे अफ़्रीका में कोई एक ढंग का प्राथमिक स्कूल भी नहीं , ( साउथ अफ़्रीका को छोड़ दिया जाये तो !) यूरोपियन, अमेरिकन, टर्किश, लैबनीज आदि अपने स्कूल चलाते हैं, उनकी फ़ीस एक विशिष्ट आर्थिक वर्ग के लोग ही दे सकते हैं । नाइजीरिया में , जहां हम रहते हैं , लगोस और पोर्टहारकोर्ट में भारतीय स्कूल हैं, जहां सिर्फ़ भारतीयों के बच्चे पढ़ते हैं , और वहाँ हिंदी पढ़ाई जाती है, निश्चय ही बच्चे तब तक उसे पढ़ लेते हैं जब तक उनके पास कोई चुनाव नहीं होता । लगोस के दूतावास में बहुत बड़ा पुस्तकालय है, जहां हिंदी की भी पुस्तकें हैं, वहाँ मैंने वर्षों पुरानी पुस्तकें देखी हैं , जिनका कवर भी नहीं खोला गया।

यहाँ रहने वाले बहुत कम भारतीय हैं जिनके बच्चे हिंदी बोलते हैं, उनकी हिंदी भी फ़िल्मी गानों पर दिवाली आदि पर डांस कर सकने तक सीमित है। मोदी गवर्नमेंट आने के बाद दूतावास में प्रति वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है, जिसमें मात्र वही लोग आते हैं जो भाग ले रहे होते हैं, राजदूत महोदय को मैंने वहाँ आते कभी नहीं देखा ।

हम ऐसी आशा क्यों रखते हैं कि अफ़्रीका में हिंदी बड़ सकती है, जबकि हमारे अपने देश में उसकी स्थिति कुछ विशेष उत्साहवर्धक नहीं है। हमारे कवि सम्मेलन फूहड़पन की सीमा तक आ पहुँचे हैं, सार्थक चर्चायें कुछ पुरानी पीढ़ी के विद्वानों तक सीमित हैं, विज्ञान, इतिहास आदि विषयों पर पुस्तकें न के बराबर हैं, उच्च शिक्षा आज भी अंग्रेज़ी में होती है, यहाँ तक कि हिंदी पढ़ाने वाले अपने बच्चों को कान्वेंट में भेजते हैं, हिंदी के लेखक सा लाचार प्राणी शायद ही दुनियाँ में कोई होगा, फिर भी हमारे पास यह प्रश्न है कि अफ़्रीका में हिंदी की स्थिति क्या है?

अमेरिका, यूरोप के कुछ देशों में हिंदी अवश्य पढ़ाई जाती है , वे धनी हैं और इसे अपनी धरोहर समझ कर सीखने का लुत्फ़ उठा सकते हैं । मैं नाइजीरिया में हूँ और फ़िलहाल स्थिति यह है कि असुरक्षा के कारण सभी सरकारी स्कूल बंद हैं ।

एक समय था जब यहाँ की अर्थव्यवस्था बहुत अच्छी थी, तब शिक्षा का स्तर भी अच्छा था, तब यहाँ भारतीय अध्यापक बड़ी संख्या में देश भर में फैले थे, और उनके विद्यार्थी जो अब प्रायः चालीस से ऊपर हैं , किसी न किसी रूप में भारतीयता से जुड़े थे, बहुत से नाइजीरियन उच्च शिक्षा के लिए भारत आते भी थे, और थोड़ा बहुत उनका हिंदी से परिचय भी था , परन्तु, भ्रष्टाचार के कारण अर्थव्यवस्था अब स्थिर नहीं है, और अध्यापक यहाँ से जा चुके हैं । नई पीढ़ी में हिंदी को लेकर कोई विशेष उत्सुकता दिखाई नहीं देती ।

फ़िल्मों का प्रभाव इतना अधिक था कि मुझे याद है सन 2000 में हमारे आँगन में साँप निकल आया, मैंने माली से कहा कि वह बाहर अच्छे से सफ़ाई कर दें ताकि साँप का भय कम हो सके , तो उसने आश्चर्य से कहा, “ मैडम आप क्यों घबरा रही हैं , आप भारतीय हो आप तो साँप को खूबसूरत औरत में बदल सकते हो । “ लोग सड़कों पर रोककर हमें अमिताभ बच्चन आदि के बारे में पूछते थे, फ़िल्मी गाने दिन भर रेडियो पर सुनते थे, भारतीय स्त्रियाँ इन्हें बहुत ख़ूबसूरत लगती थी, हमारे पारिवारिक मूल्य इन्हें आकर्षित करते थे, हमारे नृत्य इनको बहुत भाते थे ।

परन्तु इंटरनेट ने इनके जीवन को नई दिशा दी है, सूचना के स्तर पर, ज्ञान के स्तर पर, तकनीक और धन अर्जित करने के स्तर पर यह पश्चिम की ओर अधिक आकर्षित हुए हैं । भारत के योग का प्रभाव, पुरानी संस्कृति का प्रभाव अवश्य बड़ा है। पश्चिम के कारण जो जीवन प्रणालियाँ बिखरी हैं, और वातावरण की जो क्षति हुई है वह अफ़्रीका के शिक्षित लोग , जो अल्पसंख्यक हैं ,अनुभव करते हैं , और भारत को इस दृष्टि से सम्मान पूर्वक देखते हैं, परन्तु इससे हिंदी को कोई लाभ नहीं हुआ, और न ही हिंदी में ऐसा साहित्य लिखा गया है जो इन अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों को समझकर नई दिशा दे सके ।

हम जिस युग में रहते हैं, वहाँ शोषित समाज की खबर टेलीविजन पर नहीं आती। यह वह वर्ग है , जिसके पास तीन वक़्त का भोजन नहीं, बौद्धिक विकास के लिए कोई सुविधा नहीं, और हमें आश्चर्य होता है कि यह वर्ग विद्रोह में उठ खड़ा क्यों नहीं होता, हम भूल जाते हैं कि विद्रोह के लिए भी सामाजिक गठन की , नेतृत्व की आवश्यकता होती है, शिक्षा का इतना अभाव है कि इस तरह की चर्चा को कैसे बढ़ाया जाये , उसकी योग्यता ही नहीं । कुछ वर्ष मैं यहाँ के लेखकों से जुड़ी रही हूँ । उनमें एक तड़प अवश्य है, पर जब प्रश्न जिजीविषा का आता है तो संस्कृति हार जाती है। बहुत से नाइजीरियन लेखकों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफलता पाई है, परन्तु यह वह छोटा सा वर्ग है जो संपन्न है, और जिनकी शिक्षा आधुनिक है और लेखन की भाषा अंग्रेज़ी है।

अफ़्रीका में शिक्षित वर्ग अपने औपनिवेशिकों की भाषा बोलता है । जैसे कि हम अंग्रेज़ी को वह स्थान देकर बैठे हैं , इनकी अपनी भाषाएँ मरणासन्न हैं , हालत हिंदी से भी बहुत ख़राब है। नाइजीरिया खनिज संपदा में कुछ भाग्यशाली देशों में से एक है, जलवायु स्वास्थ्यवर्धक है, भूमि उपजाऊ है, लोगों में शारीरिक बल है, परन्तु फिर भी भुखमरी और अशिक्षा देखकर आपका दिल दहल उठता है। इन सबका कारण भ्रष्टाचार है, परन्तु प्रश्न यह भी है कि यह भ्रष्टाचार क्यों है? इसके अनेक कारण होंगे, परन्तु एक मुख्य कारण यह भी है कि औपनिवेशिक ताक़तों ने इनकी जीवन पद्धति को नष्ट किया है, दास प्रथा के कारण कई पीढ़ियाँ नष्ट हुई हैं, युवाओं को अमेरिका , यूरोप में बेचा गया है, एक समय में उनकी अर्थ व्यवस्था यहाँ पशु की तरह बिक रहे इन्सानों के बल पर खड़ी थी । बड़ी बड़ी बातें करने वाला पश्चिम आज भी इस महाद्वीप को दोहने से नहीं हिचकिचाता । दुनिया भर की अंतरराष्ट्रीय संस्थायें यहाँ से अपना धन कमा कर चली जाती हैं , और यहाँ का जीवन बद से बदतर होता चला जाता है ।

एक तरफ़ अमेरिका के प्राईवेट स्कूलों के बच्चे हैं, जिनके पास अपने लैंपटाप और ए. आई से सज्जित प्रयोगशालाएँ हैं , और एक तरफ़ यह बच्चे , जिनके पास पैन ख़रीदने की भी सुविधा नहीं । हमारी इस पृथ्वी का भविष्य कैसा होगा , इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं। यदि मेरी आवाज़ कहीं भी पहुँच रही है तो मैं यह कहना चाहती हूँ, जीवन को सही दिशा देना हम सबका कर्तव्य है, पृथ्वी का एक भी हिस्सा यदि शोषित है तो यह पृथ्वी पीड़ित है। न कभी एक अकेला व्यक्ति सुखी हो सकता है, न कभी अकेला राष्ट्र ! जीवन इस पृथ्वी पर एक-दूसरे से तो क्या पूरा ब्रह्मांड एक-दूसरे से जुड़ा है, फिर शोषण की आवश्यकता क्यों ? इस नए युग का आगमन भाषा द्वारा ही होगा, और हरेक को अपनी भाषा का सम्मान करना सीखना होगा, उसी में हमारा विस्मृत ज्ञान और जीवन मूल्य सुरक्षित हैं ,भाषा ही समानता का अधिकार दिलायेगी ।

यूरोप के औद्योगीकरण ने कुछ अर्थों में दुनियाँ को एक-दूसरे के क़रीब ला दिया, और बहुत से अर्थों में अफ़्रीका और एशिया के कई देशों से उनकी स्वयं की पहचान छीन ली । नाइजीरिया में खानपान इतना बदला कि , आज भी किसी को दांत का दर्द होगा तो कहेंगे, इसके अंग्रेज़ी दांत हैं , इसलिए दर्द हो रहा है । समय के साथ दुनिया में टकराव बड़ा है। हमारा सारा मनोविज्ञान का ज्ञान एक तरफ़ और धन कमाने की चाह एकतरफ़ । पच्चीस वर्ष पूर्व जब हम यहाँ आए थे, एक ही परिवार में कुछ सदस्य मुस्लिम होते थे और कुछ क्रिश्चियन, परन्तु अब यहाँ पर भी नफ़रतें बड़ रही है। जब मनुष्य मात्र धन अर्जित करना अपने जीवन का उद्देश्य बना लेता है, तो वह अपनी पहचान स्वयं से खो देता है, भाषा और संस्कृति एक-दूसरे से जुड़े हुए है, विजेता की भाषा के साथ साथ हम उसकी संस्कृति भी अपनाने लगते हैं, और हमारी सारी शक्ति उनकी नक़ल में खर्च हो जाती है, हमारी रचनात्मकता, हमारा आत्मविश्वास खोता चला जाता है।

आज इन सभी देशों की समस्या यही है। इन्हें स्वयं की खोज नहीं , उनके जैसा बनने की चाह है। इनके गाँव , परिवार अभी पूरी तरह टूटे नहीं हैं, अभी भी एक गाँव के लोग आपस में मिलजुल कर रहेंगे, गरीब रिश्ते दारों की सहायता करेंगे, परन्तु उच्च वर्ग , जो की पश्चिम जीवन पद्धति से अधिक प्रभावित है, डिप्रेशन वग़ैरह से भी उलझ रहा है।

आज भारत अपने को ढूँढ रहा है। हम पुनर्जागरण की बातें कर रहे हैं, और उसी में हमारी भलाई छिपी है, धन हमारे लिए साधन है उद्देश्य नहीं , भारत ही वह आशा की किरण है जो मानव की गरिमा, पर्यावरण , कला, अध्यात्म, और संतुलित भौतिक उन्नति की बात सोच सकता है । यदि भारत फिर से अपनी भाषा और संस्कृति का गौरव स्थापित कर सके तो अफ़्रीका के देशों को स्वावलंबी होने का एक मार्ग मिल जायेगा ।

यदि आप यहाँ हिंदी का विकास देखना चाहते हैं तो पहले यहाँ के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा का अधिकार दिलवाइये ,और इससे पहले स्वयं हिंदी को इस योग्य बनाइये कि उसके बल पर राष्ट्र निर्माण हो सके ।

संक्षेप में कहूँ तो हिंदी यहाँ न के बराबर है । पूर्व अफ़्रीका या दक्षिण अफ़्रीका में हो सकता है किसी एक आधी यूनिवर्सिटी में हिंदी सीखने की सुविधा प्राप्त हो, परन्तु आशा कम है। हमें यह समझना चाहिए कि भाषा चरित्र का निर्माण करती है, चरित्र राष्ट्र का, राष्ट्र अर्थ व्यवस्था का, और अर्थव्यवस्था फिर से भाषा में ऊर्जा भर देती है, मुझे लगता है फ़िलहाल हिंदी लेखक को अभी स्वयं के चरित्र निर्माण की आवश्यकता है, जिससे वह साहित्य में ऐसे मूल्य निवेशित कर सके , जिससे समाज के चरित्र का निर्माण हो ।

शशि महाजन- लेखिका

24 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
*आ गये हम दर तुम्हारे दिल चुराने के लिए*
*आ गये हम दर तुम्हारे दिल चुराने के लिए*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
पंख
पंख
पूनम कुमारी (आगाज ए दिल)
*
*"तुलसी मैया"*
Shashi kala vyas
शिक्षक दिवस
शिक्षक दिवस
नूरफातिमा खातून नूरी
ख्वाहिशों के बोझ मे, उम्मीदें भी हर-सम्त हलाल है;
ख्वाहिशों के बोझ मे, उम्मीदें भी हर-सम्त हलाल है;
manjula chauhan
रंग रहे उमंग रहे और आपका संग रहे
रंग रहे उमंग रहे और आपका संग रहे
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*शोध प्रसंग : क्या महाराजा अग्रसेन का रामपुर (उत्तर प्रदेश) में आगमन हुआ था ?*
*शोध प्रसंग : क्या महाराजा अग्रसेन का रामपुर (उत्तर प्रदेश) में आगमन हुआ था ?*
Ravi Prakash
आगाह
आगाह
Shyam Sundar Subramanian
हम तुम और इश्क़
हम तुम और इश्क़
Surinder blackpen
" प्रेमगाथा "
Dr. Kishan tandon kranti
I got forever addicted.
I got forever addicted.
Manisha Manjari
जीवन का जीवन
जीवन का जीवन
Dr fauzia Naseem shad
🥀*अज्ञानी की कलम*🥀
🥀*अज्ञानी की कलम*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
* याद कर लें *
* याद कर लें *
surenderpal vaidya
नारी तेरा रूप निराला
नारी तेरा रूप निराला
Anil chobisa
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
कवि रमेशराज
#त्वरित_टिप्पणी
#त्वरित_टिप्पणी
*प्रणय प्रभात*
श्रृंगार
श्रृंगार
Mamta Rani
हिदायत
हिदायत
Dr. Rajeev Jain
बोलबाला
बोलबाला
Sanjay ' शून्य'
मन मर्जी के गीत हैं,
मन मर्जी के गीत हैं,
sushil sarna
बनना है बेहतर तो सब कुछ झेलना पड़ेगा
बनना है बेहतर तो सब कुछ झेलना पड़ेगा
पूर्वार्थ
हां अब भी वह मेरा इंतजार करती होगी।
हां अब भी वह मेरा इंतजार करती होगी।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 👌💐👌
डॉ अरुण कुमार शास्त्री 👌💐👌
DR ARUN KUMAR SHASTRI
ये फुर्कत का आलम भी देखिए,
ये फुर्कत का आलम भी देखिए,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
ग़ज़ल _ अँधेरों रूबरू मिलना, तुम्हें किस्सा सुनाना है ।
ग़ज़ल _ अँधेरों रूबरू मिलना, तुम्हें किस्सा सुनाना है ।
Neelofar Khan
जेठ की दुपहरी में
जेठ की दुपहरी में
Shweta Soni
तारों की बारात में
तारों की बारात में
Suryakant Dwivedi
इंसान
इंसान
Bodhisatva kastooriya
****गणेश पधारे****
****गणेश पधारे****
Kavita Chouhan
Loading...