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नवाब रजा अली खॉं ने श्रीमद्भागवत पुराण की पांडुलिपि से रामपुर रजा पुस्तकालय एवं संग्रहालय को समृद्ध किया था
#250yearsofRAZALIBRARY
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रामपुर रजा पुस्तकालय एवं संग्रहालय की स्थापना के दो सौ पचास वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित प्रदर्शनी में एक रचना की ओर ध्यान आकृष्ट हुआ। काले और लाल रंग की गहरी मोटी लिखाई के साथ श्रीमद् भागवत पुराण के इस सचित्र लेखन के साथ जो विवरण संलग्न था, उस पर यह भी लिखा हुआ था कि 29 नवंबर 1933 को यह रचना रामपुर रजा लाइब्रेरी के संग्रह का हिस्सा बनी। सन 1930 ईसवी में रजा अली खान रामपुर के शासक बने थे। अतः 1933 की यह प्रवृत्ति नवाब रजा अली खॉ के सर्वधर्म समभाव पर आधारित सुंदर दृष्टिकोण को सशक्त कर रही है । इस चित्र में महाराज शुकदेव राजा परीक्षित और अन्यों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान कर रहे हैं।
रचना के बारे में विवरण में लिखा हुआ है कि यह कश्मीर में 1850 ईस्वी में तैयार की गई पांडुलिपि है।
रामपुर रजा लाइब्रेरी द्वारा संग्रहालय का आकार ग्रहण करने की प्रक्रिया में बहुमूल्य पांडुलिपियों की प्रदर्शनी लगाई गई है। इसमें इन्हें मूल रूप से दर्शकों के सामने रखा गया है। सभी पुस्तकें दुर्लभ हैं। यह फारसी भाषा में लिखी गई हैं। इन पर बनी हुई चित्रकारी इनका आकर्षण बढ़ा रही है। मूल फारसी लेखन के साथ-साथ संस्कृत से फारसी में पुस्तकों का अनुवाद करना बादशाहों और नवाबों को प्रिय रहा है।
अनुवाद के क्रम में नल-दमयंती की प्राचीन संस्कृत कथा को फारसी में लिखकर नल दमन शीर्षक से प्रस्तुत किया गया है। यह 1825 ईसवी की रचना है। पुस्तक को खोलकर प्रदर्शनी में रखा गया है, जिससे पुस्तक में बने हुए सुंदर चित्र दर्शकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। चित्रों में सोने के पानी का प्रयोग इनकी चमक को अनेक गुण बढ़ा रहा है। नल दमन रामपुर रजा लाइब्रेरी में किस ईस्वी सन् में आई, इसका उल्लेख नहीं है।
ताड़ के पत्तों पर तमिल भाषा में उपनिषद भी संग्रहालय की प्रदर्शनी में देखने को मिला। इन्हें अठारहवीं शताब्दी का बताया गया है। यह रामपुर रजा लाइब्रेरी में किस शासक के शासनकाल में आए, इसका उल्लेख भी नहीं मिलता।
संग्रहालय कक्ष में सोने का एक सिक्का 7.800 ग्राम का प्राचीन कुषाण समय का है। इसे 200 – 225 ईसवी समय का बताया गया है। उस समय ‘वासुदेव प्रथम’ शासक थे। इसमें भगवान शंकर और नंदी का चित्र दिखाई दे रहा है।
कैलीग्राफी का एक सुंदर नमूना प्रदर्शनी में भगवद् गीता के अध्याय चार श्लोक सात एवं आठ का देखने में आया। इसमें भगवान कृष्ण ने सज्जनों की रक्षा और दुर्जनों के संहार के लिए धरती पर अवतार लेने का आश्वासन दिया है। यह सुलेख मौलाना अबुल कलाम आजाद अरबी एवं फारसी रिसर्च इंस्टीट्यूट, टोंक, राजस्थान सरकार के सौजन्य से रामपुर रजा लाइब्रेरी के पास प्रदर्शनी के लिए रखा हुआ था। इस सुलेख को हरिशंकर बलोथिया, जयपुर ने लिखा था। कलात्मक लिखावट ध्यान आकृष्ट कर रही है।
आशा की जानी चाहिए कि दुर्लभ पांडुलिपियों और बहुमूल्य वस्तुओं के दर्शन का लाभ रामपुर और विश्व के सभी शोधकर्ताओं को भविष्य में अधिकाधिक प्राप्त होता रहेगा।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451