नवरात्रि के नवरूप माँ के
विधा-दोहा
गीत
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नवरातों के पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
व्रत रहके पूजन सदा, करें भक्त गुणगान।
प्रथम दिवस में मातु की, करें भक्त सम्मान।
शैलसुते का कर रहे, जग में सब गुणगान।
बैल सवारी आपकी, पुष्प शुशोभित हाथ ।
अस्त्र विराजे हाथ में, अर्ध चन्द्र है माथ ।
जो ध्यावैं नर माँ तुझे, करतीं हो कल्यान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
नवराते का दूसरा, देवी ब्रम्हस्वरूप।
पात्र शुशोभित हाथ में, माता रूप अनूप।
करें अपर्णा व उमा, सतरूपा का ध्यान।
ब्रम्हचारिणी से सदा, मिलता सबको ज्ञान।
तपस्विनी है आचरण, करता जग गुणगान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
नवराते का तीसरा, माता तेज प्रताप।
मातु चंद्रघंटा तुम्हीं, करो मुझे निष्पाप।
सोहे तेरे अंग में, तीन-नेत्र दस हाथ।
दुष्टों को संहार कर, भक्तों का दे साथ।
दृष्टि डाल दो दास पर, आशिष करो प्रदान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
कुष्मांडा चौथा दिवस, करती रोग विनाश।
यश वैभव देती सदा, करती बुद्धि विकास।
तेरे दर्शन मात्र से, सदा रहे दुख मुक्त।
रोग विनाशिनि मातु को, ध्यावैं जो नर भक्त।
कुष्मांडा माता मुझे, दे दो नव उत्थान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
पंचम दिन नवरात्र का, नाम देवि स्कन्द ।
आयु वृद्धि में तुम सदा, फलदायी अत्यन्त ।
कमल पुष्प दो हाथ में, अजब निराली शान।
खुशियां भर देती सदा, करें मातु का ध्यान।
दे दो माँ निज चरण में, मुझको तुम स्थान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
नवरात्री का छठा दिन, नमन करूँ मैं मात।
कात्यायनि माँ के पिता , कात्यायन ऋषि तात।
दुष्ट जीवधारी तुम्हीं, करती देवी नाश।
हरती कष्टों को सदा, दर आये जो दास।
भोग लगे शुभ मातु का, सदा शहद अरु पान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
दिवस सातवाँ मातुका, कालरात्रि है नाम।
जो ध्याता है माँ तुम्हें, बनते उसके काम।
गले मातु के है सदा, पड़ी मुण्ड की माल।
रँग है काला मातु का, नैना जैसे ज्वाल।
जो साधक ध्यावैं तुझे, वो न रहे अज्ञान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
दिवस आठवां मातु का, करती माँ उद्धार।
महागौरि जी मातु के, जाता जो दरवार।
चार भुजा हैं मातु की, डमरू है इक हाथ।
एक हाँथ तलवार है,कर मुद्रा भी साथ।
शरण मातु हूँ मैं सदा, रख के तेरा मान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
नवमी दिन नवरात्रि पर, लगे मातु जयकार।
सिद्धिदात्री मातु का, जग में है अधिकार।
आभूषण परिपूर्ण से, सजा मातु का अंग।
मुकुट शुशोभित सिर सदा, प्रियम बैंगनी रंग।
दे माँ दास”अदम्य”को, सुख ‘समृद्धि ‘सम्मान।
नवदुर्गा शुभ पर्व पर, कर लो माँ का ध्यान।
■अभिनव मिश्र”अदम्य”