नमन करू
नमन करूँ तोहे ,भव्य अम्बर,
जत वैदिक ध्वनि गुंजित होइछ,
अंतर मोनहि ज्योतिर्मय मंत्रक आभा,
अनंत सत्यक रेखांकित,देवीक धारा ।
यैह भू, यैह पवन, यैह दिव्या अग्नि जोति,
सभ नमन करित विदिक विदेह ऋषि वाणी,
मधु स्वरित उपनिषदक गाथा,
पोषित करू जड़ित जात पातक,सबूत ।
हे मनुख मनु, स्मरण करू हुनि वैदिक,
जाहि धरती धरि, सत्यक लगेने रहल ज्वारा,
युग युग धरि ज्ञानक आलोक देलथि,
पग रंज प्रज्वलित,सत्यक ओर बढ़ए विदेहि ।
यैह इतिहासमे, यैह आस्था, यैह स्नेहि हमर,
हमरे मोनमे अंकित सर्वतः विचार,
नमन हुनि, तिनका चरणमे एहि सतिक,
हमर संकल्प ओरो,श्रद्धामे अतिति सत्कार !
—-श्रीहर्ष —-