नफरत झूठ से
हो जाता है
मजबूत
सत्य
जब
लगने लगता
झूठ
सत्य
लदा होता है
झूठ
श्रृंगार से
बेबस नंगा
रहता है
सत्य
बसता है
अटारी में
झूठ
फटेहाल
रहता है
सत्य
फिर भी
डिगता नहीं
अपनी
राह से
सत्य
होती सदा
जीत
सत्य की
एक
फरेब है
झूठ
चलते जो
जीवनपर्यन्त
सत्य सादगी से
लेता नाम
ज़माना
ईज्जत से
यूँ तो
जीते मरते
लोग करोडों
बस रहते याद
सत्यवादी
हरिश्चंद्र ही
है ये शरीर
हाड़ मांस का
मिल जायेगा
धूल ज़मीं में
दिया है
ईश ने
ये मानव जन्म
जीलो इसे
सत्य ईमान से
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल