नज़्म
नज़्म
कोई जरूरी तो नहीं कहा जाए,
पर आंखों में आंसू सजाया जाए।
तू गिला हूं मैं क्यूं पींऊ,
जाम तो आंखों से पिलाया जाए।
मेरे दिल में झील दरिया है समुंदर,
क्यूं खिंचे इसे बचाया जाए।
टुकड़ा जो पेट भूखे का भरे,
घणा बुरा नहीं है अगर वो चुराया जाए।
जिंदगी दांव पर लगी है मेरी,
तो चलो ठीक है इसे हराया जाए ।
जरूर रखना तू इतनी तेज आवाज,
हुकूमत को अगर सुनाया जाए।
बनता फिरता हूं मैं दर्पण आज,
यह दर्पण भी तुमको आज दिखाया जाए।
मस्जिद यहां है मंदिर भी यहां है,
भूखो को चलो आज कुछ खिलाया जाए ।
खान मनजीत भावड़िया लिख नज़्म,
उन भूखा नंगों और मेहनती इंसानों पर लिखा जाए।
©
खान मनजीत भावड़िया मजीद
गांव भावड तह गोहाना सोनीपत हरियाणा