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12 Sep 2024 · 1 min read

आगाह

ज़माने का रुख़ इस क़दर फ़रेबी है ,
यहाँ सीरत पर सूरत की फ़ितरत भारी है ,

बच उन राहों से जो अज़ाब की ओर ले जाते हैं ,
जो तुझे ज़मीर-ओ -ईमान से भटका हुआ
ज़ेहनी ग़ुलाम बनाते है ,

ग़र भूलकर भी तू बढ़ चला उन राहों पर ,
कर भरोसा इस ज़माने की बातों पर ,

तय है तू अपनी करनी पर पछताएगा ,
जब तू हर सिम्त अंधेरा ही अंधेरा पाएगा ,

तब तेरा उन अंधी राहों की गिरफ़्त से
लौटना नामुमकिन हो जाएगा।

Language: Hindi
77 Views
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