धन
धन के पीछे भाग रहा है,ये सारा संसार
रूप धरा पर धन के देखे, रूप हैं कई हजार
आकर्षण धन का बड़ा, और बड़ा व्यापार
और बड़े धनवान हों, सबको एक विचार
धन सत्ता और बाहुबल, करते हैं तकरार
नहीं बढ़ा मुझसे कोई,अहं की है भरमार
जीवन जीने के लिए,अन्न की है दरकार
अन्न धन सबसे बड़ा, ईश्वर का उपहार
गोधन गजधन वाज धन, हीरे मोती के हार
आदिकाल से ही रहे,हर मनुष्य का प्यार
भूपति होने का रहा, साम्राज्यवादी विचार
रूप सौंदर्य काम की,चाहत सब संसार
धन पद वैभव लालसा, बढ़ा रही व्यभिचार
धन की चाहत में बढ़ रहा,धरा पर भ़ष्टाचार
विद्या धन है परम धन,हरती सभी विकार
प़कट करे संतोष धन,सारे धन लगें असार
सुरेश कुमार चतुर्वेदी