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5 Aug 2016 · 1 min read

दोहे मिश्रित (1)

जो दुनिया के सामने, …बनकर रहा कठोर !
उसका भी औलाद पर, कब चलता है जोर !!

कितना भी चिल्लाईए,..लाख मचाएं शोर!
कुदरत पर इन्सान का,कब चलता है जोर! !

बैठे हों जब हर तरफ,….इर्द गिर्द सब चोर!
सचमुच वहाँ प्रधान का,कब चलता है जोर !!

राष्ट्रवाद के नाम पर, करते वही कलेश!
जिन्हे नही है फिक्र ये,कहाँ खडा है देश!!

खाते हैं जिस थाल मे,..करें उसी मे छेद !
सुनकर ऐसी बात भी, होता रक्त सफ़ेद !!

मतलब के बाजार का , …………ये ही रहा उसूल !
मकसद तक झुक कर रहो, फिर जाओ सब भूल !!

थी कोसों की दूरियाँ, मगर लगी वो पास !
शायद कहते हैं इसे, प्यार भरा अहसास !!

रहा नहीं वो गाँव अब , ..रहे नहीं वे लोग !
मित्र आज देहात को, लगा शहर का रोग !!

रहा हमेशा वक्त का,…..अपने जो पाबंद !
जीवन मे उसने लिया,हर पल का आंनद !!

लिया लक्ष्य को आपने,दिल मे अगर उतार !
बना रहेगा आप मे, ……..ऊर्जा का संचार !!
रमेश शर्मा

Language: Hindi
1 Like · 695 Views
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