देख चुप खुद मौन मुझसे प्रश्न कोई (नवगीत)
नवगीत –6
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शांत रहता हूँ
कभी जब
धैर्य मेरा टूटता है ।
देख चुप खुद
मौन मुझसे
प्रश्न कोई पूछता है ।
कौन सी
तेरी व्यथा जो
धूप सी है चिलचिलाती
और आँखे
आह में तप
दर्द में आँसू बहती ?
कौन से है
दृश्य जिनसे
हो रहा तू आज विचलित
कौन सी
ऐसी पहेली
है जिसे तू बूझता है ?
जिंदगी रूपी
दरख्तों
चुप्पियां तोड़ो निगोड़ी
चहचहाती
रह गयी है
पंछियों सी उम्र थोड़ी
पतझड़ों के
वृक्ष देखो
सह गए कितने थपेड़े
द्वार पर
बैठा हुआ अब
ठूठ कोई ऊँघता है ।
कोशिशें
होंगी नहीं ऐ
जुगनुओं नाकाम तेरी
देख तारों ने
बिछाई
रोशनी अनुपम घनेरी
हौसलों के
पंख से उड़
कर्म के दीपक जलाकर
जिंदगी तेरी
स्वयं की
कौन तुमको रोकता है ?
~रकमिश सुल्तानपुरी