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19 Jul 2019 · 1 min read

दीवाने थे

ना काँटों से दुश्मनी थी ना फूलों के दीवाने थे
कुछ गम थे नसीब की तहरीरों में जो हमें निभाने थे

खिलता गुलशन ग़रूर कर बैठा नाजुक से फूलों पर
वो भूल गया अभी तो ख़िज़ाँ के मौसम भी आने थे

अब के बरस इस बारिश को दर्द के निशां मिटाने थे
किसी के ज़ख्म सहलाने किसी के आँसू छिपाने थे

आगाज़-ए-मुहब्बत अंजाम-ए-नफरत हो चला था
ये किसी के किस्से थे और अब किसी को सुनाने थे

वो तोहफ़े वो तस्वीरें वो चंद कागज़ के टुकड़े
किसी की जागीर थे वो तो किसी के राज़ पुराने थे

किसी की चाहत में खुद को न जाने कहाँ छोड़ आए
हमें तो दिल में रहना था कौन से महल बनाने थे

सागर

Language: Hindi
1 Like · 437 Views
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