कवि सम्मेलन में जुटे, मच्छर पूरी रात (हास्य कुंडलिया)
दस्तरखान बिछा दो यादों का जानां
ज़ब तक धर्मों मे पाप धोने की व्यवस्था है
दुःख हरणी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
प्रेम की साधना (एक सच्ची प्रेमकथा पर आधारित)
बिहार से एक महत्वपूर्ण दलित आत्मकथा का प्रकाशन / MUSAFIR BAITHA
वह दौर भी चिट्ठियों का अजब था
Unki julfo ki ghata bhi shadid takat rakhti h
मुख से निकली पहली भाषा हिन्दी है।
अपनी मनमानियां _ कब तक करोगे ।
आज फिर किसी की बातों ने बहकाया है मुझे,
न ख्वाबों में न ख्यालों में न सपनों में रहता हूॅ॑