“दीप जले”
“दीप जले”
अमावस की काली रात में,दीप जला उजियाला फैलाता।
घर आंगन देहरी अटारी में ,रंगोली सजा नया परिवेश बनाता।
पांच दिवसीय पर्व सुहाना ,हर्षोल्लास से भर जाता।
कुम्हार दीप गढ़ता ,लक्ष्मी गणेश की मूर्ति सुंदर बनाता।
रीति रिवाज परम्पराएं चली आ रही ,धर्म पर विजय दिलाता।
दीप जले जगमग कतारों में, अंतर्मन आस्था विश्वास जगाता।
घर आँगन दुल्हन सी सजी हुई,
इंद्रधनुषी प्रकाशित कर जाता।
अज्ञानता दूर तमस अंधकार ,अंतर्मन ज्ञान का दीप जलाता।
दीपमालिका से निखरती धरती, “शशि” तारे भी देख शरमा जाता।
पुलकित मन प्रफुल्लित हो ,एक दूसरे को उपहार देकर खुशियाँ मनाता।
आतिशबाजी फुलझड़ियां ,अनार फटाखों से आसमान जगमगाता।
शशिकला व्यास