*दीपावली का ऐतिहासिक महत्व*
दीपावली का ऐतिहासिक महत्व
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्मय ।
मृत्योर्मा अमृत गमय।
ऊ॰ शांतिः शांतिः शांतिः ।।
अर्थात: सत्य से सत्य की ओर।
अंधकार से प्रकाश की ओर।
मृत्यु से अमरता की ओर (हमें ले जाओ )।
ओम शांति शांति शांति।
दीपावली शब्द संस्कृत के दो शब्दों से दीप अर्थात दीया वह आवली अर्थात श्रृंखला के मिश्रण से हुई है।
दीपावली…. संस्कृत शब्द ..भाव- प्रज्वलित दीपों का समूह, (एक से अधिक प्रज्वलित दीपो की श्रृंखला) संरचना प्रवृत्ति –सुख, समृद्धि ,शांति, ज्ञान तथा प्रेम।
पद्म पुराण और स्कंद पुराण मैं दीपावली का उल्लेख मिलता है दीये (दीपक ) को सूर्य के हिस्सो का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है। सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है। दीपावली के त्यौहार के हिंदू ,सिख, बौद्ध, जैन धर्म के लोग इसके अनुयायी हैं। धार्मिक निष्ठा और उत्सव इसका उद्देश्य माना जाता है। दीपावली के उत्सव में दीये जलाना, घर की सजावट ,खरीददारी, पूजा आतिशबाजी,उपहार और मिठाइयों के आदान-प्रदान द्वारा इसको मनाया जाता है। दीपावली का आरंभ दीपावली से 2 दिन पहले धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज के दो दिन बाद इसका समापन होता है। दीपावली की तिथि कार्तिक माह अमावस्या को पड़ती है।
दीपावली यही चरितार्थ करती है कि असतो मां सद्गमय तमसो मा ज्योतिर्गमय
भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है और सत्य का नाश होता है दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाज में बदलाव पाया जाता है। धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है।
हिंदू धर्म रामायण के अनुसार : हिंदू धर्म के अनुयायी राम के 14 वर्षो के वनवास के पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मनाते हैं।
महाभारत के अनुसार 12 वर्षों के वनवास वह 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक के रूप में मनाते हैं।
दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है और कुछ दीपावली को विष्णु की बैकुंठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते हैं।
देवी महाकाली ने जब राक्षसों का वध करने के लिए रौद्र रूप धारण किया और राक्षसों के वध के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तो भोलेनाथ स्वयं उनके चरणों में लेट गए। और भोलेनाथ के स्पर्श मात्र से ही देवी माँ काली का क्रोध समाप्त हो गया इसलिए उनके शांत स्वरूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। दीपावली के दिन महाकाली के रौद्र रूप काली की भी पूजा की जाती है।
धनतेरस के दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली होती है इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं अगले दिन दीपावली आती है इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी उंगली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते बृजवासियों को बचाया था। इस दिन लोग अपने गाय बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है। भाई दूज या भैया दूज को यम द्वितीय भी कहते हैं।
जैन मतावलंबियों के अनुसार: कार्तिक मास अमावस्या को 24 में तीर्थंकर महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी इस दिन उनके प्रथम शिष्य गौतम गंधर्व को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। अतः अन्य समुदायों से जैन दिवाली की पूजन विधि पूर्णतया भिन्न है।
सिख धर्म के लिए दीपावली अति महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन ही अमृतसर में 1557 में स्वर्ण मंदिर का शिलान्यास हुआ था और इसके अलावा 1619 में दीपावली के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था जिसे सिख धर्म के अनुयायी बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं।
पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म वह महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ था इन्होंने दीपावली के दिन गंगा तट पर स्नान करते समय ओम कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानंद ने दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। दीन ए इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलत खान के सामने 40 गज ऊंचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। जहांगीर, मुगल वंश के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था और आयोजित कार्यक्रमों में हिंदू मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीपावली को संसार के अन्य भागों में भी विशेष रूप से धूमधाम से मनाया जाता है।
हरमिंदर कौर, अमरोहा।