“त्रिशूल”
“त्रिशूल”
लगता यह पतित पावनी गंगा
है त्रिशूल से डरती,
तभी तो आकर पास मेरे
स्नेह नहीं करती,
अशिक्षा असमानता अन्याय के
चुभते शूलों को सहकर
आज तलक जिन्दा हूँ मैं,
गंगा जहाँ बहती वहीं का
एक रहवासी बन्दा हूँ मैं।
“त्रिशूल”
लगता यह पतित पावनी गंगा
है त्रिशूल से डरती,
तभी तो आकर पास मेरे
स्नेह नहीं करती,
अशिक्षा असमानता अन्याय के
चुभते शूलों को सहकर
आज तलक जिन्दा हूँ मैं,
गंगा जहाँ बहती वहीं का
एक रहवासी बन्दा हूँ मैं।