तुम
अचछा,,अब चलूँ
कहकर,
मेरे हाथ पर से
अपनी हथेली,
हटाकर,
तुम चले गये।
पर, फिर, भी ,
रह गये मुझमे,
जैसे रह जाती है ,
तश्तरी में,
संतरे के छिलकों,
की खुशबू ,
पुदीने के
हरे पत्तो की महक
और हींग की गंध ,
तुम,समाये रहे मुझमें,
मै,जहां- जहां जाती हूं,
तुम साथ- साथ चलते हो ,
दुनियादारी के ,
सारे पहाड,
इसी तरह ,
चढ लिये है ,
तुम साथ हो,
ये,,ताकत है ,
बहुत बडी,
सब होता है ,
कितना,
आसान,
मन ,
जब- जब ,
महसूस करता
रहा है,
साथ
तुम्हारा